Book Title: Shravak Ke Barah Vrat
Author(s): Mangla Choradiya
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 33
________________ छठा स्थूल दिशा परिमाण व्रत दिशा परिमाण गुणव्रत की प्रतिज्ञा द्रव्य से-सभी दिशाओं से आने वाले पापाश्रव को रोकने के लिए मर्यादित क्षेत्र से-अपने मर्यादित क्षेत्र के अनुसार । काल से-जीवन पर्यन्त। भाव से-एक करण तीन योग से अर्थात मन, वचन, काय से उक्त प्रकार की गई मर्यादा से अधिक न जाऊँगा/जाऊँगी। दिशा परिमाण व्रत के अतिचार (दोष) 1. उड़ढदिसिप्पमाणाइक्कमे-ऊँची दिशा के परिमाण से आगे जाना। 2. अहोदिसिप्पमाणाइक्कमे-नीची दिशा के परिमाण से आगे जाना। 3. तिरियदिसिप्पमाणइक्कमे-तिरछी दिशा की मर्यादा के उपरान्त जाना। 4. खित्तवुड्ढी-एक दिशा के परिमाण को घटाकर दूसरी दिशा में जोड़ना या सब दिशाओं का कि.मी. जोड़कर एक दिशा में जोड़ना। 5. सइअन्तरद्धा-की हुई मर्यादा में संदेह होने पर आगे जाना। दिशा परिमाण व्रत के नियम 1. ऊँची दिशा-आकाश मार्ग से जाना पड़े तो कि.मी. ( ) 2. नीची दिशा-खान, तहखाने, कुंआ, बावड़ी, तालाब, समुद्र आदि में उतरना पड़े तो कि.मी. ( ) 3. तिरछी दिशा-पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण दिशा में भारत वर्ष या देश के बाहर जाना पड़े तो एक करण एक योग से जावज्जीव अथवा ( ) उपरान्त त्याग। 4. मर्यादित क्षेत्र के बाहर या भारत वर्ष के बाहर पत्र व्यवहार करना पड़े ( ) रखता हूँ। 5. दिशा की मर्यादा से बाहर जाने का सन्देह हो तो आगे नहीं जाऊँगा/ जाऊँगी। 28

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