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* सातवें उपभोग परिभोग परिमाण व्रत के आगार (छूट) 1. अपने या किसी संबंधी के बाल बच्चे आदि का नाक, कान बिंधाना
पड़े तो आगार। 2. मैंने पहनने, ओढ़ने, बिछौने के कपड़ों की जो मर्यादा की है, उसके
उपरांत किसी कपड़े का शरीर से स्पर्श हो जाय तो आगार। 3. यद्यपि नशे की चीज शौक से नहीं पीऊँगा। तथापि रोगादि विशेष
कारण से यदि दवाई में पीना पड़े तो आगार। 4. जो मैंने हरे शाक, फल आदि का त्याग किया है, उसमें से भी यदि
औषधि आदि में जरुरत पड़े तो आगार। 5. यदि त्याग की हुई वस्तु का भूल से मिश्रण हो जावे, अनजान में या
उपयोग नहीं रहने से वह वस्तु काम में आ जावे, लग्न व मृत्यु के समय तथा किसी उत्सव पर या दुष्काल के समय आदि त्याग की
हुई वस्तु का इस्तेमाल करना पड़े तो आगार है। 6. सूखी लकड़ी या सूखे घास का व्यापार करना पड़े तो आगार है। 7. मिल, प्रेस आदि में काम आने वाले सामान का व्यापार करना पड़े
तो आगार है। 8. जो मैंने जूते की मर्यादा की है, उसमें यदि जूता खो जाने पर फिर
नया पहनना पड़े तो आगार है। 9. रोगादि तथा शारीरिक कारण से मर्यादा के बाहर की वस्तुएँ काम में
लाना पड़े तो आगार है। सातवें व्रत की शिक्षाएँ 1. रात्रि में या अँधेरे में भोजन नहीं बनाना चाहिए और न ही करना
चाहिए, क्योंकि रात्रि और अँधेरे में छोटे-छोटे जन्तु नहीं दिखाई देते हैं, इसलिए उनकी रक्षा होना असंभव है। इसके सिवाय किसी जहरीले जानवर के गिरने से शरीर को हानि पहुँचती है।
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