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3. विवाह, उत्सव, प्रीतिभोज, संघजीमण आदि के कारण स्थावर जीवों की हिंसा होती हो तो मेरे आगार हैं।
4. भूल चूक, वृद्धावस्था या परवशता के कारण व्रत न पल सके तो मेरे आगार हैं।
असिकर्म-सुई चाकू, कैंची, छुरी, ब्लेड, घंटी, बन्दूक, पिस्तौल, तलवार, कटारी, कुदाल, लकड़ी, खीला, खुरपा, ऊखल-मूसल, घट्टी इत्यादि अनेक प्रकार के शस्त्र हैं, उनकी गिनती से मर्यादा करें।
मसिकर्म-कलम, कागज, दवात, पेन्सिल, स्याही आदि पेन, डायरी, नोटबुक, पत्र-पत्रिका, फाईल, प्रिण्टिंग प्रेस, टाईपराईटर आदि की संख्या ( )
कृषिकर्म- हल, फावड़ा, कुदाली, खेती करने, जमीन खोदने, बाग-बगीचा बनाने आदि का त्याग या मर्यादा करें। ( ) अहिंसा अणुव्रत के आगार (छूट) 1. अपने शरीर संबंधी, सगे (मनुष्य तिर्यंच) संबंधी, अनुकंपा निमित्त
चोर शत्रु वगैरह से अपना रक्षण करते प्रमाद अथवा बिना उपयोग के
जीवों को आघात पहुंचे तो उनका मेरे आगार हैं। 2. जीवोत्पत्ति न हो या अधिक न बढ़े इस दृष्टिकोण से सफाई करने में
या दवा इत्यादि छिड़कने का आगार। 3. स्वयं के अधीनस्थ खेती और व्यापार से हिंसा का भाव न होते हुए
भी छः काय जीवों की विराधना हो जाय तो आगार। 4. अपने निजी स्वार्थ के लिए मकान-दुकान आदि निर्माण करने में, रसोई आदि के लिए अग्नि का आरम्भ करते, मार्ग में चलते, गाड़ी आदि चलाते समारंभ करने में, नहीं चाहते हुए भी स्थावर जीवों के आश्रय से यदि त्रस जीवों की विराधना हो जाय तो उनका मेरे आगार हैं।
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