Book Title: Shravak Ke Barah Vrat
Author(s): Mangla Choradiya
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 25
________________ धन तिजोरी में जाते ही तेरे सर्वस्व को लूटने लग जाता है। कहा भी है अनीति से धन होत है, वर्ष पाँच और सात । तुलसी द्वादश वर्ष में, जड़ामूल से जात ॥ अर्थात् अन्याय और अनीति से उपार्जित धन बारह वर्ष तक ही टिकता है तेरहवें वर्ष में प्रवेश करते ही समूल नष्ट हो जाता है। अतः श्रावक को अन्याय से धनोपार्जन कभी नहीं करना चाहिए । चौथा स्थूल मैथुन विरमण व्रत ब्रह्मचर्य अणुव्रत की प्रतिज्ञा द्रव्य से-पंचेन्द्रिय जन्य काम भोग से निवृत्त होकर आत्मस्वरूप में रमण करना मेरा लक्ष्य है। उसकी पूर्ति के लिए स्वयं की विवाहित स्त्री/पति का आगार रखकर शेष सभी स्त्रियों / पुरुषों को माता/पिता, बहन/भाई के समान समझँगा / समझँगी । क्षेत्र से मेरे मर्यादित क्षेत्र में, जहाँ भी मैं निवास करूँ । काल से- जीवन पर्यन्त मैथुन सेवन का उक्त प्रकार से त्याग करता/करती हूँ । भाव से मनुष्य तिर्यंच संबंधी एक करण एक योग से एवं देव - देवी संबंधी दो करण तीन योग से काम भोग का त्याग करता/करती हूँ । मैथुन विरमणव्रत के अतिचार (दोष) 1. इत्तरियपरिग्गहियागमणे-अल्पवय वाली पाणिगृहिता स्वस्त्री/स्वपति के साथ गमन नही करूँगा/करूँगी। 2. अपरिग्गहियागमणे - जिसके साथ अभी तक विवाह नहीं हुआ है, केवल सगाई हुई है। ऐसी स्त्री अथवा पति के साथ गमन नहीं करूँगा /करूँगी। 20

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