Book Title: Shravak Ke Barah Vrat
Author(s): Mangla Choradiya
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 6
________________ सम्यक्त्व ग्रहण का पाठ सम्यक्त्व का स्वरूप "अरिहंतो महदेवो, जावज्जीवं सुसाहुणो गुरुणो।" __ जिणपण्णत्तं तत्तं, इअ सम्मत्तं मए गहियं ।।" अरिहंत भगवान ही मेरे देव हैं, सुसाधु मेरे गुरु हैं और जिनेश्वर प्रणीत तत्त्व ही मेरा धर्म है। यह सम्यक्त्व मैंने जीवन पर्यन्त के लिए ग्रहण किया है। आज से पहले अज्ञानता के कारण मैंने मिथ्या धर्म पाला, वह मेरा पाप निष्फल होवे। प्रतिज्ञा 1. मैं देवगत मिथ्यात्व का त्याग करने के उद्देश्य से वीतराग देव (जिनेश्वर भगवन्त) के अतिरिक्त किसी भी सरागी देव को देवबुद्धि से वन्दना नमस्कार नहीं करूँगा/करूँगी। 2. मैं गुरुगत मिथ्यात्व का त्याग कर रहा हूँ, इसलिए पंच महाव्रतधारी निर्ग्रन्थ गुरु के अतिरिक्त किसी को भी गुरु बुद्धि से वंदन नमस्कार नहीं करूँगा/करूँगी। 3. मैं केवली भाषित दयामय धर्म को ही धर्म मानूंगा/मानूंगी। 4. मैं अरिहन्त देव, निर्ग्रन्थ गुरु, दयामय धर्म और 32 शास्त्र रूप जिनवाणी पर दृढ़ आस्था रखूगा/रलूँगी। 5. तीर्थंकर भगवान की वाणी को दृढ़ श्रद्धा के साथ जीवन में उतारूँगा/ उतारूँगी। 6. हिंसा धर्म, अहिंसा धर्म, जड़ पूजा, गुण पूजा, शिथिलाचारी, शुद्धाचारी, सरागी देव, वीतरागी देव आदि गलत सही सभी को समान नहीं समझूगा/समझूगी। | 7. सप्त कुव्यसन-नशा, जुआ, चोरी, मांसाहार, शिकार, परस्त्री गमन, वैश्या गमन का त्याग र गा/रलूँगी।

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