Book Title: Shravak Ke Barah Vrat Author(s): Mangla Choradiya Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal View full book textPage 4
________________ Kle प्रकाशकीय ठाणांग सूत्र के दूसरे ठाणे में दो प्रकार के धर्म का कथन है"दुविहे धम्मे पण्णत्ते, तं जहा-सुयधम्मे चेव, चरित्तधम्मे चेव" कथित चारित्र धर्म दो प्रकार का कहा है-"चरित्तधम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहाअगारचरित्तधम्मे चेव, अणगारचरित्तधम्मे चेव।" जो साधक पाँच महाव्रत, पाँच समिति, तीन गुप्त्यादि रूप चारित्र को तीन करण, तीन योग से जीवन पर्यन्त के लिए धारण करते हैं तथा ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की आराधना में लीन रहते हैं वे अणगार कहलाते हैं। अणगार विषयवासना आदि से रहित होते हैं तथा शान्ति और आनन्द में निमग्न रहते हैं। अगारधर्मी अपनी कामनाओं व वृत्तियों को पूर्णतः रोकने में समर्थ नहीं होता लेकिन उन्हें सीमित अवश्यमेव करता है। अनियन्त्रित वृत्तियों को नियन्त्रित कर त्याग व मर्यादा में अवस्थित होना 'व्रत' कहलाता है। व्रतों से अव्रत की क्रिया रूक जाती है और अनेक पापों से जीव बच जाता है। यदि व्रत अंगीकार न करे तो सभी सांसारिक प्रवृत्तियों के पाप का भागी बनकर जीव दुर्गति प्राप्त करता है। तीर्थंकर प्रभु ने प्राणी मात्र पर असीम कृपा करके दुर्गति से बचने का मार्ग प्रशस्त किया है। उपासकदशांग सूत्र में श्रावक के बारह व्रतों का वर्णन है, जिनको धारण करके आनन्द, कामदेव आदि श्रेष्ठियों ने अपने जीवन को मर्यादित बनाकर एकाभवतारी बना लिया। अवसर्पिणी काल के इस पाँचवें आरे में हमें आर्य क्षेत्र, उत्तम कुल और वीतराग भगवन्तों की वाणी सुनने व समझने का सुनहरा अवसर प्राप्त है, निश्चय ही हम भाग्यशाली हैं। यदि वीतराग वाणी कोPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 70