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शिक्षाप्रद कहानियां
देंगे और उससे सम्बन्धित जो भी आवश्यक कार्य होगा वो सब करेंगे।
यह सुनकर महात्मा बोले- यही तो धर्म है। और धर्म क्या है? सबसे बड़ा धर्म यही है।
यह सुनकर यात्री बोले- लेकिन, हमारे यहाँ तो इसे HELP (सहायता) कहते हैं। पर अब समझ में आ गया कि सहायता ही धर्म होता है। और वे सब प्रसन्न मन से अपने गन्तव्य की ओर प्रस्थान कर गये।
इस प्रसंग से हमें यह प्रेरणा लेनी चाहिए कि सबसे बड़ा धर्म होता है, प्राणीमात्र की सहायता करना। कहा भी जाता है कि
कृतिनोऽपि प्रतीक्षन्ते सहायं कार्यसिद्धये । चक्षुष्मानपि नालोकाद्विना वस्तूनि पश्यति ॥
अर्थात् चतुर व्यक्ति भी कार्य को सिद्ध करने के लिए सहायक की अपेक्षा रखता है। आँख वाला व्यक्ति भी प्रकाश के बिना पदार्थों को नहीं देख पाता है।
२. सबसे बड़ा कर्तव्य परोपकार
बात उस समय की है जब हमारे देश में मुगलों का साम्राज्य था। राजस्थान के प्रसिद्ध शहर जयपुर में एक व्यक्ति रहता था। एक दिन जब वह व्यक्ति अपने काम में लगा हुआ था, तो उसके पास एक युवक आया और कहने लगा महोदय, ये लीजिए अपने बीस हजार रूपये आपने बुरे समय में मेरी सहायता की थी और अब मैं इन्हें लौटाने में सक्षम हूँ अतः कृपया आप ये पैसे रख लीजिए। मैं आपका बहुत ही कृतज्ञ हूँ।
यह सुनकर वह व्यक्ति ध्यानपूर्वक युवक को देखते हुए बोलेमाफ करना, लेकिन मैंने तो आपको पहचाना नहीं और न ही मुझे ये याद आ रहा है कि- मैंने कभी कोई पैसे आपको दिये थे।