Book Title: Shasan Samrat Jivan Parichay Author(s): Ramanlal C Shah, Pritam Singhvi Publisher: Parshv International Shaikshanik aur Shoudhnishth PratishthanPage 11
________________ शासन सम्राट : जीवन परिचय. की सूचना महाराजश्री को दी । अतः महाराजश्री ने उनके लिए व्यवस्था करदी और कहा कि 'भाई नेमचंद तुम्हारे स्नान-भोजन की व्यवस्था शेठ जशराजभाई के यहा की गई है और दिन-रात रहना यहाँ उपाश्रय में है बोलो तुम्हें स्वीकार है ? नेमचंदभाई ने इस बात के लिए तुरंत संमति देदी । वैराग्यका रंग : उसी दिन से उनका अभ्यास प्रारंभ हो गया । जैसे-जैसे वे अभ्यास करते गए वैसे - वैसे उन्हें उसमें और जिज्ञासा बढ़ती गई । इतना ही नही त्याग - वैराग्य का रंग भी उन्हें लगता चला गया । एकबार रात के समय विचार करते हुए उन्हें लगा कि "घर संसार से साधुजीवन कितना उत्तम है।" उनकी इस भावना को उत्तरोत्तर पोषण मिलता रहा, वह इस सीमा तक कि दादीमा (पितामही)के निधन के समाचार पिताने दिए तब महुवा जाने के बदले उन्होंने पिताश्री को संसार की क्षणभंगुरता का बोध करवाते हुए पत्र लिखा । इस पत्र से पिताश्री को आशंका हुई कि कहीं नेमचंदभाई दीक्षा न ले ले । अतः गलत बहाना बनाकर नेमचंदभाई को फौरन महुवा बुला लिया । महुवा आते ही नेमचंदभाई पिताश्री की यह युक्ति समझ गए । किन्तु अब कोई दूसरा उपाय न था । पिताश्री ने उन्हें पुनःभावनगर जाने के लिए मना कर दिया । एक दिन नेमचंदभाई ने अपने मित्र से बात करते हुए कह दिया कि वे दीक्षा लेनेवाले हैं । यह बातPage Navigation
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