Book Title: Shasan Samrat Jivan Parichay Author(s): Ramanlal C Shah, Pritam Singhvi Publisher: Parshv International Shaikshanik aur Shoudhnishth PratishthanPage 51
________________ शासन सम्राट : जीवन परिचय. ४६ जावाल में चातुर्मास : (सं. १९७१) __ अहमदाबाद से महाराज श्री कडी, पानसर, भोयणी, महेसाणा, तारंगा, कुंभारियाजी इत्यादि तीर्थों में विहार करते हुए आबू पहुंचे । आबु में आठ दिन का विराम कर महाराज श्री अचलगढ, सिरोही पाडीव इत्यादि स्थलों पर विहार करते करते जावाल पधारे । जावाल एक छोटा सा गांव माना जाता है । परन्तु इस गांव के श्रावकों की धर्मभावना और आग्रह देखते हुए महाराज श्री ने वि.सं. १९७१ का चातुर्मास जावाल में करने का निर्णय लिया । इस चातुर्मास के विराम के दौरान महाराज श्री ने गांव के लोगों को प्रेरणा दी-पाठशाला की स्थापना करवाई, नया उपाश्रय बनवाया, पशु सुरक्षा गृह की स्थापना की नूतन देरासर के लिए वाडी खरीदवा कर आसपास के गांवों के बीच चल रहे संघर्ष का निराकरण करवाया । तदुपरांत जावाल में दीक्षा महात्सव का आयोजन हुआ । बोटाद के श्री अमृतलाल तथा राजगढ के श्री प्यारेलाल को दीक्षा दी गई और अमृतलाल का नाम मुनि श्री अमृतविजयजी तथा प्यारेलाल का नाम मुनि श्री भक्तिविजयजी रखा गया । जावाल के श्रावकों का भक्तिभाव और उत्साह देखकर महाराज श्री की प्रेरणा से पालीताणा में धर्मशाला बांधने का निर्णय प्रकट किया गया और तदनुसार पालीताणा में आणंदजी कल्याणजी की पेढी के बरामदे में जावाल वाला की धर्मशाला बनी । साधु महात्माओं के नैष्टिक अखंड ब्रह्मचर्य और करुणाभरी संयमशील साधना का प्रभाव पडे बिना नहीं रहता है । महाराज श्री के जीवन में भी ऐसी कुछ घटनाएं अंकित है ।Page Navigation
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