Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 33 Pindniryukti Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
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आगम (४१/२)
[भाग-३३] “पिण्डनियुक्ति”- मूलसूत्र-२/१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:)
मूलं [५३७] » “नियुक्ति: [४९९] + भाष्यं [३५] + प्रक्षेपं [५... . पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४१/२], मूलसूत्र-०२/२] पिण्डनियुक्ति मूलं एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत गाथांक नि/भा/प्र ||४९९||
उत्पादनायां१२-१३ विद्यामनेयोः साधोर पादकिसस्य |दृष्टान्तो
पिण्डनियु- पडिमंतथंभणाई सो वा अन्नो व से करिज्जाहि । पाबाजीवियमाई कम्मणगारी भवे बीयं ॥ ४९९ ॥ तेर्मळयगि- __व्याख्या-इह कथानके न कोऽपि दोपो जातः, पादलिससूरीगों मुरुग्डराज प्रत्युपकारित्वात् , केवलं प्रागुक्तवियाकथानक इस रीयाचिः मन्त्रेऽपि प्रयुज्यमाने सम्भाव्यन्ते दोषाः ततस्तदुपदर्शनं क्रियते, तत्रेय गाथा पानिव व्यारूपेपा, नवरं 'भो बीयं 'ति पुष्टमालम्बनम
धिकृत्य द्वितीयम्-अपवादपदं भवेत, सहनदिप्रयोजने मन्त्रोऽपि प्रयोक्तव्य इति भावार्थः, एसब विधावामपि द्रष्टव्यम् । उक्त विद्यामकानाख्यं द्वारदपम्, अथ चूर्णयोगमूलकाख्यं द्वारवयमाइ--
चुन्ने अंतहाणे चाणके पायलेवणे जोगे। मूल विवाहे दो दंडिणी उ आयाण परिसाडे ॥ ५..॥
व्याख्या-चूर्णेऽन्त ने-लोके दृष्टिपथतिरोधानकारके दृष्ट्वान्ने चाणक्यविदिती द्वौ क्षुलकी, पादे-बादले नरूपे योगे दृष्टान्ताः समितसूरयः, तथा 'मूले ' मूलकमेणि अक्षतयोनिक्षतयोनिकरणरूपे युवतिय दृष्टान्तः, विवाहवियेऽपि मूलकर्मणि युवतिद्वयमुदाहरणं, तथा गर्भाधानपरिसाटरूपे मूलकर्मणि द्वे 'दण्डिन्यौ ' नृपपल्ल्याबुदाहरणं । तत्र 'चुने अंतद्धाणे चाणके' इत्यस्यवं भाष्यगाथात्रयण व्याख्यानयति
जंघाहीणा ओमे कुसुमपुरे सिरसजोगरहकरणं । खुड्डु दुगंजण सुगणा गमगं देसंतरे सरणं ॥४४॥ (भा.) भिक्खे परिहार्यते थेराणं तेसि ओमि दिताणं । सहभुज्ज चंदगुत्ते ओमोयरियाए दोबल्लं ॥ ४५ ॥ (भा०) चाणक पुच्छ इटालचुण्णदारं विहित्तु धूमे य । दुहुँ कुच्छपसंसा थेरसमीवे उबालंभो ॥ ४६॥ (भा.)
दीप
अनुक्रम [५३७]
भा०३५ भा० ३६ भा० ३७
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