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प्रस्तावना
[ख] बौद्धशासन-परीक्षा में ज्ञानका अविसंवादित्व समर्थन करते हुए 'तदुक्तम्' कहकर सिद्धि
विनिश्चयका निम्न पद्य उद्धृत किया है
“विषदर्शनवत्सर्वमज्ञस्य कल्पनात्मकम् । दर्शनं न प्रमाणं स्यादविसंवादहानितः ॥
[क] यशस्तिलक -
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इस पद्यको पं० महेन्द्रकुमारजीने टोकासे निम्नरूपमें संकलित किया है"विषदर्शनव दज्ञस्य दर्शनमविकल्पकम् ।
न स्यात्प्रमाणं सर्वमविसंवादहानितः ।। २
यद्यपि अर्थको दृष्टिसे दोनों पद्योंमें कोई विशेष अन्तर नहीं है तो भी निश्चय ही विद्यानन्दिको अकलंकका मूल पद्य प्राप्त रहा होगा ।
[७] यशस्तिलक और सत्यशासन-परीक्षा
यशस्तिलक सोमदेवसूरि ( ९५९ ई० ) का महान् संस्कृत ग्रन्थ है। इसमें यशोधरकी कथा के माध्यम से कला, साहित्य, संस्कृति, इतिहास, धर्म, न्याय, दर्शन आदि अनेक विषयोंका महत्त्वपूर्ण विवेचन किया गया है।
सोमदेव यद्यपि न तो विद्यानन्दिका हो उल्लेख किया है और न सत्यशासन-परीक्षाका ही; किन्तु सोमदेवने चार्वाकमतके खण्डन में जो तर्क दिये हैं वे स्पष्ट रूपसे सत्यशासन-परीक्षा में विद्यमान हैं । तुलना कीजिए—
सत्यशासन - परीक्षा
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" सत्यं न धर्मः क्रियते यदि स्याद्गर्भावसानान्तर एव जीवः । न चैवम् —
जातिस्मराणामथ रक्षसां च दृष्टेः परं किं न समस्ति लोके । [ उत्त० ९२ ]
[ख] यशस्तिलक—
[fafafar. 9128]
" मृतानां केचिद् रक्षोयक्षादिकुलेषु स्वयमुत्पन्नत्वेन कथयतां दर्शनात् केषांचि भवस्मृतेरुपलम्भाच्च ।"
[ चार्वाक ० ६ १८ ]
सत्यशासन - परीक्षा
"भूतात्मकं चित्तमिदं च मिथ्या स्वरूपभेदात्पवनावनीच"
“भूतचैतन्ययोः’ "अभेदे शरीराकारपरिणतावनि-वन पवनसख-पवनामप्येकत्वप्रसङ्गात् । ””
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[ उत्त० ९३ ]
[arato § 99]
[ग] यशस्तिलक में निम्न दो पद्य नीलपटके नामसे उद्धृत किये गये हैं, जो कि सत्यशासन - परीक्षा में
भी पाये जाते हैं ।
१. सध्य० बौद्ध० $ १५
२. सिद्धिवि० १।२४
३. विशेष विवरण - यश० उत्त० पृ० २७२, सत्य०, चार्वा० ९१७