Book Title: Satyashasan Pariksha
Author(s): Vidyanandi Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 92
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्यशासन-परीक्षा ७. पत्रपरीक्षा-इस ग्रन्थमें पत्रलक्षणोंको समीक्षा की गयो है तथा जैनदृष्टिसे पत्रका परिष्कृत लक्षण दिया गया है। पत्रपरीक्षा में विद्यानन्दिने प्रतिज्ञा और हेतु ये दो ही अनुमानके अंग बताये हैं। प्रतिपाद्याशयानुरोध से दशावयवोंका भी समर्थन किया गया है, किन्तु ये दशावयव न्यायदर्शनमें प्रसिद्ध दशावयवोंसे भिन्न हैं । विद्यानन्दिकी तर्कप्रधान रचनाओं में यह सबसे अधिक लघुकाय है। इसका प्रकाशन 'सनातन जैन ग्रन्यमाला' में बनारससे सन् १९१३ में आप्तपरीक्षाके साथ हुआ था। ८. सत्यशासनपरीक्षा-प्रस्तुत ग्रन्थ । ९. श्रीपुरपाश्वनाथस्तोत्र-आप्तमीमांसा या देवागमस्तोत्रकी शैलीमें लिखा गया यह एक ३० पद्योंका स्तोत्र है । देवागमस्तोत्रकी तरह ही दुरूह और जटिल भी है। इस स्तोत्रका विषय श्रीपुरस्थ भगवान् पार्श्वनाथकी स्तुति है। कपिल आदिमें अनाप्तता बतलाकर पार्श्वनाथमें आप्तता सिद्ध की गयी है और उनके वीतरागत्व, सर्वज्ञत्व और मोक्षमार्गप्रणेतृत्वको स्तुति की गयी है। श्रीपुरपार्श्वनाथस्तोत्र 'वीरसेवामन्दिर'से पं० दरबारीलालजी कोठिया न्यायाचार्य द्वारा सम्पादित और अनुवादित होकर सन् १९४९ में प्रकाशित हुआ है। इसके पूर्व सन् १९२१ में मराठी टोका सहित श्री पात्रकेसरीस्तोत्रके साथ प्रकाशित हुआ था। [६] विद्यानन्दिके समग्र अध्ययनको आवश्यकता सत्यशासन-परीक्षाके प्रकाशित होनेके साथ विद्यानन्दिका सभी उपलब्ध साहित्य प्रकाशमें आ चुकता है। अब विद्यानन्दिके कृतित्व और व्यक्तित्वके समग्र अध्ययनको आवश्यकता है। मेरी इच्छा थी कि सत्यशासन-परीक्षाको प्रस्तावनामें इस प्रकारको कुछ सामग्री देता, किन्तु पी-एच० डी० के कार्यमें लगे रहते उतना सब सम्भव न हो सका। भारतीय दर्शनोंका तुलनात्मक अध्येता कोई अन्वेषक यह उत्तरदायित्व संभाले तो वह निश्चित रूपसे पायेगा कि विद्यानन्दिका चिन्तन एक नहीं कई शोध प्रबन्धोंकी वस्तु है और उसे विद्वतसमाजके समक्ष प्रस्तुत करके वह केवल उपाधि ही नहीं पायेगा, प्रत्युत साहित्य शास्त्र की महती श्रीवृद्धि भी करेगा। -गोकुलचन्द्र १. पत्रपरीक्षा, पृ०१०। For Private And Personal Use Only

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