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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २१ प्रस्तावना [ख] बौद्धशासन-परीक्षा में ज्ञानका अविसंवादित्व समर्थन करते हुए 'तदुक्तम्' कहकर सिद्धि विनिश्चयका निम्न पद्य उद्धृत किया है “विषदर्शनवत्सर्वमज्ञस्य कल्पनात्मकम् । दर्शनं न प्रमाणं स्यादविसंवादहानितः ॥ [क] यशस्तिलक - www.kobatirth.org इस पद्यको पं० महेन्द्रकुमारजीने टोकासे निम्नरूपमें संकलित किया है"विषदर्शनव दज्ञस्य दर्शनमविकल्पकम् । न स्यात्प्रमाणं सर्वमविसंवादहानितः ।। २ यद्यपि अर्थको दृष्टिसे दोनों पद्योंमें कोई विशेष अन्तर नहीं है तो भी निश्चय ही विद्यानन्दिको अकलंकका मूल पद्य प्राप्त रहा होगा । [७] यशस्तिलक और सत्यशासन-परीक्षा यशस्तिलक सोमदेवसूरि ( ९५९ ई० ) का महान् संस्कृत ग्रन्थ है। इसमें यशोधरकी कथा के माध्यम से कला, साहित्य, संस्कृति, इतिहास, धर्म, न्याय, दर्शन आदि अनेक विषयोंका महत्त्वपूर्ण विवेचन किया गया है। सोमदेव यद्यपि न तो विद्यानन्दिका हो उल्लेख किया है और न सत्यशासन-परीक्षाका ही; किन्तु सोमदेवने चार्वाकमतके खण्डन में जो तर्क दिये हैं वे स्पष्ट रूपसे सत्यशासन-परीक्षा में विद्यमान हैं । तुलना कीजिए— सत्यशासन - परीक्षा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " सत्यं न धर्मः क्रियते यदि स्याद्गर्भावसानान्तर एव जीवः । न चैवम् — जातिस्मराणामथ रक्षसां च दृष्टेः परं किं न समस्ति लोके । [ उत्त० ९२ ] [ख] यशस्तिलक— [fafafar. 9128] " मृतानां केचिद् रक्षोयक्षादिकुलेषु स्वयमुत्पन्नत्वेन कथयतां दर्शनात् केषांचि भवस्मृतेरुपलम्भाच्च ।" [ चार्वाक ० ६ १८ ] सत्यशासन - परीक्षा "भूतात्मकं चित्तमिदं च मिथ्या स्वरूपभेदात्पवनावनीच" “भूतचैतन्ययोः’ "अभेदे शरीराकारपरिणतावनि-वन पवनसख-पवनामप्येकत्वप्रसङ्गात् । ”” For Private And Personal Use Only [ उत्त० ९३ ] [arato § 99] [ग] यशस्तिलक में निम्न दो पद्य नीलपटके नामसे उद्धृत किये गये हैं, जो कि सत्यशासन - परीक्षा में भी पाये जाते हैं । १. सध्य० बौद्ध० $ १५ २. सिद्धिवि० १।२४ ३. विशेष विवरण - यश० उत्त० पृ० २७२, सत्य०, चार्वा० ९१७
SR No.020664
Book TitleSatyashasan Pariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandi Acharya, Gokulchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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