Book Title: Satyashasan Pariksha
Author(s): Vidyanandi Acharya, Gokulchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 88
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३० सत्यशासन-परीक्षा आप्तपरीक्षाकी प्रस्तावना में पं० दरबारीलालजी कोठिया, न्यायाचार्यने इस तरहसे सुन्दर विचार किया है, उसीका सार नीचे प्रस्तुत किया जाता है पूर्वावधि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. न्यायसूत्रपर लिखे गये वात्स्यायन ( ई० ३-४ शती) के न्यायभाष्य और न्यायसूत्र तथा न्यायभाष्यपर रचे गये. उद्योतकरके न्यायवार्तिकका तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक ( पृ० २०५, २०६, २८३, ३०९) में नामोल्लेखपूर्वक तथा बिना नामके सविस्तर समालोचन किया है। उद्योतकरका समय ६०० है, इसलिए विद्यानन्द ६०० ई० के पूर्ववर्ती नहीं हो सकते । माना जाता २. विद्यानन्दिने जैमिनि, शवर, कुमारिलभट्ट और प्रभाकरके सिद्धान्तोंका अपने ग्रन्थोंमें खण्डन किया है । कुमारिल तथा प्रभाकरका समय ईसाकी सातवीं शताब्दी ( ई० ६२५ से ६८० ) है | अतः विद्यानन्दि ६८० ई० के पश्चाद्वर्ती हैं । ३. विद्यानन्दिने कणादके वैशेषिक सूत्र तथा उसपर लिखे गये प्रशस्तपादभाष्य तथा प्रशस्तपादभाष्यपर रची गयी व्योमशिवाचार्यको टीकाका आप्तपरीक्षा ( पृ० २४, २५, १०६, १०७, १४९) में खण्डन किया है । व्योमशिवाचार्यका समय ई० सातवीं शतीका उत्तरार्ध ( ६५० से ७०० ई० ) माना जाता है, अतः विद्यानन्दि ७०० ई० के पूर्ववर्ती नहीं हो सकते । ४. धर्मकीर्ति और उनके अनुगामी प्रज्ञाकर तथा धर्मोत्तरका अष्टसहस्री ( पृ० ८१, १२२, २७८ ), प्रमाणपरीक्षा ( पृ० ५३ ) में खण्डन किया है। धर्मोत्तरका समय ई० ७२५ माना जाता है, अतः विद्यानन्दि ७२५ ई० के पश्चाद्वर्ती हैं । ५. अष्टसहस्री ( पृ० १८ ) में मण्डनमिश्रका नामोल्लेखपूर्वक तथा इलोकवार्तिक ( पृ० ९४ ) और सत्यशासन-परीक्षा ( पुरुषा० ६१९) में उनकी ब्रह्मसिद्धिकी 'आहुविधातृप्रत्यक्षम् ' कारिकाको उद्धृत किया है । शंकराचार्य के प्रधान शिष्य सुरेश्वरके बृहदारण्यकोपनिषद्भाष्यवार्तिक ( ३-५ ) से अष्टसहस्त्री (१०९३, १६१ ) में पद्य उद्धृत किये हैं । मण्डन मिश्र का समय ई० ६७० से ७२० तक और सुरेश्वरका समय ई० ७८८ से ८२० तक समझा जाता है । विद्यानन्दिके ग्रन्थोंमें सूरेश्वरसे उत्तरवर्ती किसी भी ग्रन्थ या ग्रंथकारका उल्लेख नहीं है । अतएव ८२० ई० विद्यानन्दिको पूर्वावधि मानना चाहिए । उत्तरावधि - ६. वादिदेवसूरिने अपने पार्श्वनाथचरित ( इलो० २८ ) और न्यायविनिश्चयविवरण ( प्रशस्ति २ ) आचार्य विद्यानन्दकी स्तुति की है । वादिदेवका समय ई० सन् १०२५ सुनिश्चित है, अतः विद्यानन्द १०२५ ई० के पूर्ववर्ती हैं । ७. प्रशस्तपादभाष्यपर चार टीकाएँ हैं जिनमें से विद्यानन्दिने केवल प्रथमका खण्डन किया है अन्यका नहीं । चौथो टीका लक्षणावली उदयनने सन् ९८४ में बनायो, अतः विद्यानन्द इसके पूर्ववर्ती हैं। ८. उद्योतकरके न्यायवार्तिकपर वाचस्पति मिश्र की तात्पर्यटीका है । विद्यानन्दिने उद्योतकरका तो खण्डन किया, किन्तु वाचस्पति मिश्रका नहीं । वाचस्पतिका समय ई० ८४१ है । अतः विद्यानन्द उसके पूर्ववर्ती हैं। इस तरह अन्तरंग परीक्षण द्वारा विद्यानन्दिका समय ई० ७७५ से ८४० तक निश्चित होता है । इस समय की पुष्टि में और प्रमाण भी विद्यमान हैं ९. विद्यानन्द अकलंकके सर्वप्रथम टीकाकार हैं । अकलंकका समय न्यायाचार्य पं० महेन्द्रकुमारजीने विशेष ऊहापोह के बाद ई० ७२० ७८० निश्चित किया है, अतः विद्यानन्दि इसके उत्तरवर्ती हैं । For Private And Personal Use Only

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