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सत्यशासन-परीक्षा
आप्तपरीक्षाकी प्रस्तावना में पं० दरबारीलालजी कोठिया, न्यायाचार्यने इस तरहसे सुन्दर विचार किया है, उसीका सार नीचे प्रस्तुत किया जाता है
पूर्वावधि
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१. न्यायसूत्रपर लिखे गये वात्स्यायन ( ई० ३-४ शती) के न्यायभाष्य और न्यायसूत्र तथा न्यायभाष्यपर रचे गये. उद्योतकरके न्यायवार्तिकका तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक ( पृ० २०५, २०६, २८३, ३०९) में नामोल्लेखपूर्वक तथा बिना नामके सविस्तर समालोचन किया है। उद्योतकरका समय ६०० है, इसलिए विद्यानन्द ६०० ई० के पूर्ववर्ती नहीं हो सकते ।
माना जाता
२. विद्यानन्दिने जैमिनि, शवर, कुमारिलभट्ट और प्रभाकरके सिद्धान्तोंका अपने ग्रन्थोंमें खण्डन किया है । कुमारिल तथा प्रभाकरका समय ईसाकी सातवीं शताब्दी ( ई० ६२५ से ६८० ) है | अतः विद्यानन्दि ६८० ई० के पश्चाद्वर्ती हैं ।
३. विद्यानन्दिने कणादके वैशेषिक सूत्र तथा उसपर लिखे गये प्रशस्तपादभाष्य तथा प्रशस्तपादभाष्यपर रची गयी व्योमशिवाचार्यको टीकाका आप्तपरीक्षा ( पृ० २४, २५, १०६, १०७, १४९) में खण्डन किया है । व्योमशिवाचार्यका समय ई० सातवीं शतीका उत्तरार्ध ( ६५० से ७०० ई० ) माना जाता है, अतः विद्यानन्दि ७०० ई० के पूर्ववर्ती नहीं हो सकते ।
४. धर्मकीर्ति और उनके अनुगामी प्रज्ञाकर तथा धर्मोत्तरका अष्टसहस्री ( पृ० ८१, १२२, २७८ ), प्रमाणपरीक्षा ( पृ० ५३ ) में खण्डन किया है। धर्मोत्तरका समय ई० ७२५ माना जाता है, अतः विद्यानन्दि ७२५ ई० के पश्चाद्वर्ती हैं ।
५. अष्टसहस्री ( पृ० १८ ) में मण्डनमिश्रका नामोल्लेखपूर्वक तथा इलोकवार्तिक ( पृ० ९४ ) और सत्यशासन-परीक्षा ( पुरुषा० ६१९) में उनकी ब्रह्मसिद्धिकी 'आहुविधातृप्रत्यक्षम् ' कारिकाको उद्धृत किया है । शंकराचार्य के प्रधान शिष्य सुरेश्वरके बृहदारण्यकोपनिषद्भाष्यवार्तिक ( ३-५ ) से अष्टसहस्त्री (१०९३, १६१ ) में पद्य उद्धृत किये हैं । मण्डन मिश्र का समय ई० ६७० से ७२० तक और सुरेश्वरका समय ई० ७८८ से ८२० तक समझा जाता है ।
विद्यानन्दिके ग्रन्थोंमें सूरेश्वरसे उत्तरवर्ती किसी भी ग्रन्थ या ग्रंथकारका उल्लेख नहीं है । अतएव ८२० ई० विद्यानन्दिको पूर्वावधि मानना चाहिए ।
उत्तरावधि -
६. वादिदेवसूरिने अपने पार्श्वनाथचरित ( इलो० २८ ) और न्यायविनिश्चयविवरण ( प्रशस्ति २ ) आचार्य विद्यानन्दकी स्तुति की है । वादिदेवका समय ई० सन् १०२५ सुनिश्चित है, अतः विद्यानन्द १०२५ ई० के पूर्ववर्ती हैं ।
७. प्रशस्तपादभाष्यपर चार टीकाएँ हैं जिनमें से विद्यानन्दिने केवल प्रथमका खण्डन किया है अन्यका नहीं । चौथो टीका लक्षणावली उदयनने सन् ९८४ में बनायो, अतः विद्यानन्द इसके पूर्ववर्ती हैं।
८. उद्योतकरके न्यायवार्तिकपर वाचस्पति मिश्र की तात्पर्यटीका है । विद्यानन्दिने उद्योतकरका तो खण्डन किया, किन्तु वाचस्पति मिश्रका नहीं । वाचस्पतिका समय ई० ८४१ है । अतः विद्यानन्द उसके पूर्ववर्ती हैं।
इस तरह अन्तरंग परीक्षण द्वारा विद्यानन्दिका समय ई० ७७५ से ८४० तक निश्चित होता है । इस समय की पुष्टि में और प्रमाण भी विद्यमान हैं
९. विद्यानन्द अकलंकके सर्वप्रथम टीकाकार हैं । अकलंकका समय न्यायाचार्य पं० महेन्द्रकुमारजीने विशेष ऊहापोह के बाद ई० ७२० ७८० निश्चित किया है, अतः विद्यानन्दि इसके उत्तरवर्ती हैं ।
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