Book Title: Satik Gacchachar Prakirnak Sutram
Author(s): Purvacharya, Danvijya Gani
Publisher: Dayavijay Granthmala
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| सवसावज्जकज्जमणो , तम्मि समए रायवाडियाए
उवहओ न बलेण जओ-"छलमुचियं कीवाणं, कीवाणव धणियविरहिए ठाणे । बलवंताण नराणं, न एसमग्गो मुवंसाण ॥१॥" ता जइ तुम्हाण पर्यड भुयडबलमत्थि तो पुराओ निगंतूण मम परक्कमपईवसिहाए सलभलीलमुबहह, तओ एवंविह द्यवयणतज्जिया अवि पंडवा भयभीया सियाला इव बिलाओ न नीहरिया सनयराओ जुज्झिउं, तओ बहुदिणरोहेण निबिन्नो दमदंतो हत्यिसीसपुरं गओ एवं चितिऊण-खत्तियकुलुम्भवाणं, सम्मुहपताणं सिंहपोयत्व । जुझं काउं उचिय, अन्नह अजसो फुरइ लोए॥१॥ इओ य नाएणं रज्जं पालयंतो दमदंतो कइवयदिणेहिं वइकतेहिं सिरिनेमिनाइसीससिरिधम्मघोससूरिवयणमहद्दहसंभूयसंवेगरसरंगततरङ्गतरङ्गिणीए धम्मदेसणाए हाऊण विगयपावसंतावो रजमकजं, भंडारे कारागारे, पेयसीओ रक्खसीओ, विसए विसेव, चउरंगसाइणं दुग्गइसाहणं च मन्नतो संवेगं गओ संसारसुखमुझिय वज्जिय सवसावज्जकज्जमणवज पवजं पडिवज्जइ, तओ रायरिसी कमेण गीयत्यो होउं विहरतो पंडवपालिए हथिणाउरे गोउर
यारे मेरुब निप्पकंपो पडिमं ठिओ, तम्मि समए रायवाडियाए निम्गच्छतेहिं पंचहिं पंडवेहि पलोइय वाहणेहि उत्तरिय नमंसिओ भावसारं मुणीसरो अहो दुक्करकारओ एस रायरिसी इय अभिनंदिय पुरओ पत्थिएमु तेस, तत्य आगओ सपरियणो पयईए दुज्जणो दुजोहणो, ते मुणिदं पिक्खिय अणेणम्हाणं प्रवारिसागयं कित्तिसहस्समवहरियं पुत्ववइरमणुसरंतो माउलिंगेण ताडेइ, तब्भावं मुणतेण तपरियणेण य पाहाणखंडेहिं आहणिऊण लिडरासी कओ, तओ रायवाडीए बलिएण जुहिद्विररन्ना तत्य तं मुणिमपिच्छंतेण तहाणे लिहुरासि पलोयंतेण नियपरियणो पुट्ठो कहि विहरिओ स महप्पा धम्मकप्पहुकप्पो ? तेणावि दुजोहणवुत्ततो तप्पुरओ वुत्तो तं मुणिय अईव अधिई कुणतो पायकेहिं लिहुरासिं दूरे काराविय अंगसं
ओ पत्थिएस तेस, तत्व
IS| रियणो पयइए
मतेण तपरियणेण य प
नियपरियणो पुट्ठो कासिं रे काराविय अगस

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