Book Title: Satik Gacchachar Prakirnak Sutram
Author(s): Purvacharya, Danvijya Gani
Publisher: Dayavijay Granthmala
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याहिं अज्जाहिं एवं वृत्ता समाणी हट्ठा २ सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमुयइ २ सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेति २ जेणेव सुव्वयाओ अज्जाओ तेणेव उवागच्छइ २ सुव्वयाओ अज्जाओ तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणेणं वंदइ नमसइ २ एवं वयासीआलित्तेणं भंते जहा देवाणंदा तहा पव्वइया जाव अज्जा जाया जाव गुत्तभयारिणी, ततो सा सुभद्दा अज्जा अन्नया कयाइ बहुजणस्स चैडरूवेसु मुच्छिया जाव अज्झोववन्ना, अव्यंगणं च, उब्वट्टणं च, फासुअपाणं च, अलत्तगं च, कंकणाणिय अंजणं च, वन्नगं च, चुन्नगं च, खेलगाणि य, खज्जुगाणि य, खीरं च, पुष्पाणि य गवेसति २ बहुजणस्स दारए वा दारियाओ वा कुमार अ कुमारिआओ अ डिंभए य डिभियाओ य अप्पेगइयाओ अभंगेइ - अप्पेगइयाओ उबट्टेइ, एवं अप्पेगइयाओ फासुयपाणएणं ण्हावेति,अप्पेगइयाओ पाए रयति, अप्पेगइ आओ उट्ठे रएति,अप्पेगइयाओ अच्छीणि अंजेति, अप्पेगइयाओ उसूए करे, अपेगइयाओ तिलए करेति, अप्पेगइयाओ एगिंदलए य करेति, अप्पेगइयाओ पंतियाओ करेति, अप्पे छिज्जाई करेइ, अगए वन्नणं समालभई,अप्पेगइए चुन्नएणं समालभइ, अप्पेगइयाणं खेलणगाई दलयति, अप्पेगइयाणं खज्जुल्लगाई दलयति, अप्पेगइयाणं वीरभोगणं भुंजावेति, अप्पेगइयाणं पुप्फाई ओनुयति, अप्पेगइया पादेसु ठवेति अप्पे जंघासु करेति, एवं ऊरुसु उच्छंगे कडीए विपिट्ठीए उरंसि खंधे सीसे करतलपुडेण गहाय, हलउलेमाणी २ गायमाणी २ पुत्तपिवास वा धूयपिवास वा नत्तुपिवासं वा नत्तिपिवास वा पञ्चणुव्भवमाणी विहरवि, तए णं ताओ सुव्वयाओ अज्जाओ सुभद्दं अज्जं एवं वयासी- अम्हे णं देवाणुप्पिए ! समणीओ निम्गंधीओ इरियासमिइयाओ जाव गुत्तबंभचारिणीओ, नो खलु अम्हें कप्पति धातीकम्मं करिए तुमं चणं देवाणुप्पिए ! बहुजणस्स चेडरूवेसु मुच्छिया जाव अज्झोववन्ना अब्भंगणं जाव नत्तिपिवास
प्रा

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