Book Title: Satik Gacchachar Prakirnak Sutram
Author(s): Purvacharya, Danvijya Gani
Publisher: Dayavijay Granthmala
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गच्छा चार
॥१३॥
पवइत्तए, अहामुहं देवाणुप्पिए ! मा पडिबंध करेह । तए णं से काले गाहावइ विउलं असणं ४ उवक्खडावेइ २ त्ता मित्तणाइनियगसयणसंबंधिपरियणं आमंतेइ २ तओ पच्छा ण्हाए जाब विउलेणं पुष्फवत्थगंधमल्लालंकारेणं सकारेचा, सम्माणेत्ता तरसेव मित्तणातिणियगसयणसंबंधि परियणस्स पुरओ कालियं दारियं सेयापीएहिं कलप्तेहि पहावेइ २ सदालंकारविभूसियं करेइ २ त्ता पुरिससहस्सवाहणीयं सीयं दुरूहति, मित्तणाइनियगसयणसंबंधिपरियणेण सद्धि संपरिबुडा सविडीए जाव खेणं आमलकप्पं णयरिं मझमज्झेणं निग्गच्छइ २ ता जेणेव अंबसालवणे चेइए तेणेव उवा०२ चा छत्ताइए तित्थगराइसए पासइ २ चा सीयं ठवेइ २ त्ता कालियं दारियं सीयाओ पच्चोरुहति । तए णं तं कालियं दारियं अम्मापियरो पुरओ काउं जेणेव पासे अरहा पुरिसादाणोए, तेणेव उवा० २ वंदइ नमसइ २ एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! काली दारिया अम्हं धूया इट्ठा जाब किमंग पुण पासणयाए ! एस णं देवाणुप्पिया ! संसारभउचिग्गा, इच्छइ देवाणुपियाणं अंतिए मुंडा भवित्ता जाव पवइत्तए, ते एयं देवाणुप्पियाणं सिस्सिणिभिक्खं दलयामो, पडिच्छतु णं देवाणुप्पिया ! सिस्सिणिभिक्खं, अहामुहं देवा० मा पडिबंध । तए णं सा काली कुमारी पासं अरह वंदइ नमसइ २ चा, उत्तरपुरच्छिम दिसीभागं अवकमइ २ ता, सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमुयइ २ त्ता सयमेव लोयं करेइ २ जेणेव पासे अरहा पुरिसादाणीए तेणेव उवा०२ पास अरहं तिक्खुत्तो वंदइ णमंसइ २ एवं वयासी-आलित्ते ण भंते लोए एवं जहा देवाणंदा जाव सयमेव पहाविउं। | तए णं पासे अरहा पुरिसादाणीए कालि सयमेव पुप्फचूलाए अज्जाए सिस्सिणीयत्ताए दलयइ, तए णं सा पुप्फचूला अज्जा कालि कुमारि सयमेव पहावेइ जाव उवसंपज्जित्ताणं विहरइ । तए णं सा काली अज्जा जाया, इरिया समिया
॥१३६॥

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