Book Title: Saptatikaprakaran Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 8
________________ सम्पादकीय जो सुझाव भेजे थे तदनुसार सशोधन कर दिया गया है। फिर भी अनुवाद में गलती होना सभव है जिसका उत्तरदायित्व मेरे ऊपर है। ___ अन्त में मैं उन सभी महानुभावों का आभार मानता हूँ जिनकी यथा योग्य, लहायता से मैं इस कार्य को सम्पन्न कर सका है। सर्व प्रथम मैं जैन दर्शन के प्रकाण्ड विद्वान् श्रीमान् प० सुखलाल जी का चिर आमारी है जिनके प्रेमवश मैंने इस काम को हाथ में लिया था। प हीराचद जी ने पूरे अनुवाद को पढ़कर अनेक सुझाव भेजने का काट किया था। इससे अनुवाद को निदोप बनाने में वढी सहायता मिली है, इसलिये मै उनका भी आभारी हूँ । 'मै सप्ततिका का अनुवाद कर दू' यह प्रस्ताव मेरे मित्र पं० महेन्द्र कुमार जी न्यायाचार्य ने किया था। उन्होंने प० सुखलाल जी से प्रारम्भिक बातचीत भी की थी। इस हिसाब से इस कार्य को चालना देने में पं० महेन्द्रकुमार जी का विशेष हाय है अत मैं इनका विशेप आभारी हूँ। हिन्दू विश्वविद्यालय में जैन दर्शन व जैन आगम के अध्यापक प० दलसुख जी मालवणिया का तो में और भी विशेप आभारी हूँ, इन्हीं के प्रयत्न से यह ग्रन्थ इतने जल्दी प्रकाश में आ रहा है। इन्होंने छपाई आदि में जहाँ जिल वात की कमी देखी उसे पूरा करके मेरी सहायता की है । मण्डल के मन्त्री बाबू दयालचन्दजी एक सहृदय व्यक्ति हैं। मूल ग्रन्थ के छप जाने पर भी प्रस्तावना के कारण बहुत दिन तक ग्रन्थ को प्रेस में रुकना पडा हे फिर भी आप अपने सौजन्य-पूर्ण व्यवहार को यथावत् निभाते गये। इसलिये इनका में सर्वाधिक आभारी हूँ। वनारस। मार्गशीर्ष कृष्ण ७ वीर नि• सं० २४७४ फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्रीPage Navigation
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