________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
देशपांडे इन सभी सहायकों का मैं हृदय से आभारी हूं। लेखकों के हस्तलिखित सामग्री का टंकन करने का कार्य मेरे मित्र श्री. नत्थूप्रसाद तिवारी तथा श्री. रोटकर ने नित्य नियमितता से किया।
इस संपादन कार्य के लिए विविध प्रकार के ग्रंथों की आवश्यकता थी। सभी ग्रंथ खरीदना असंभव और अनुचित भी था। परिषद की ओर से कुछ ग्रंथ खरीदे गए। बाकी ग्रंथों का सहाय नागपुर के सुप्रसिद्ध हिन्दु धर्म संस्कृति मंडल तथा भोसला वेदशास्त्र महाविद्यालय, तथा अन्य व्यक्तियों एवं ग्रंथालयों से यथावसर मिलता रहा।
कोश का सामान्य स्वरूप
___ कोश संपादन एक ऐसा कार्य है कि जिसमें स्वयंप्रज्ञा का कोई महत्त्व नहीं होता। संपादक को अपनी जो भी प्रविष्टियां लेनी हो अथवा उन प्रविष्टियों में जो भी जानकारी संगृहीत करनी हो, वह सारी पूर्व प्रकाशित ग्रंथों के माध्यम से संचित करनी पड़ती है। इस दृष्टि से प्रस्तुत कोश के संपादन के लिए अनेक पूर्वप्रकाशित मान्यताप्राप्त विद्वानों के कोश तथा वाङ्मयेतिहासात्मक ग्रंथों का आलोचन किया गया। उन सभी ग्रंथों का निर्देश संदर्भ ग्रंथों की सूची में किया है। पूर्व सूरियों के अनेकविध ग्रंथों से उधार माल मसाला लेकर ही कोश ग्रंथों का निर्माण होता है। तदनुसार ही इस संस्कृत वाङ्मय कोश की रचना हुई है। इसमें हमारी कोई मौलिकता नहीं। संकलन, संक्षेप, संशोधन एवं संपादन यही हमारा इसमें योगदान है।
संस्कृत वाङ्मय की शाखाएं विविध प्रकार की हैं। उनमें से अन्यान्य शाखाओं में अन्तभूर्त ग्रंथ एवं ग्रंथकारों का पृथक्करण न करते हुए, एकत्रित तथा सविस्तर परिचय देनेवाले विविध कोश तथा ऐतिहासिक और साहित्यिक दृष्टिकोन से विवेचन करने वाले तथा परिचय देने वाले वाङ्मयेतिहासात्मक ग्रंथ, पाश्चात्य संस्कृति का संपर्क आने के पश्चात्, पाश्चात्य और भारतीय विद्वानों ने निर्माण किए हैं। उन ग्रंथों में उन वाङ्मय शाखाओं के अन्तर्गत ग्रंथ तथा ग्रंथकारों का सविस्तर परिचय मिलता है। प्रस्तुत कोश के परिशिष्ट में ऐसे अनेक कोशात्मक तथा इतिहासात्मक ग्रंथों के नाम मिलेंगे।
प्रस्तुत संस्कृत वाङ्मय कोश की यह विशेषता है कि इसमें संस्कृत वाङ्मय की प्रायः सभी शाखाओं में योगदान करने वाले ग्रंथ एवं ग्रंथकारों का एकत्र संकलन हुआ है। इस प्रकार का "सर्वंकष" संस्कृत वाङ्मय कोश करने का प्रयास अभी तक अन्यत्र कहीं नहीं हुआ। इस वाङ्मय कोश में विविध प्रकार की त्रुटियां विशेषज्ञों को अवश्य मिलेगी। हमारी अपनी असमर्थता के कारण हम स्वयं उन त्रुटियों को जानते हुए भी दूर नहीं कर सके। फिर भी उन त्रुटियों के साथ इस ग्रंथ की यही एक अपूर्वता हम कह सकते हैं कि यह संस्कृत के केवल ललित अथवा दार्शनिक शास्त्रीय या वैदिक साहित्य का कोश नहीं अपि तु उन सभी प्रकार के ग्रंथों तथा उनके विद्वान लेखकों का एकत्रित परिचय देने वाला हिन्दी भाषा में निर्मित प्रथम कोश है।
इसके पहले इस प्रकार का प्रयास न होने के अनेक कारण हो सकते हैं। उनमें पहला कारण यह है कि भारतीय भाषा परिषद जैसी दूसरी कोई संस्था इस प्रकार का कार्य करने के लिए उद्युक्त नहीं हुई। दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि आज 20 वीं शती के अंतिम चरण में जितने विविध प्रकार के कोश, इतिहास, शोधप्रबंध इत्यादि उपकारक ग्रंथ उपलब्ध हो सकते हैं, उतने 1960 के पहले नहीं थे। अब इस दिशा से संस्कृत वाङ्मय के विविध क्षेत्रों में पर्याप्त कार्य नए विद्वान कर रहे हैं। हो सकता है कि इसी कोश के संशोधित और सुधारित आगामी संस्करण का कार्य करनेवाले भावी संपादक, यहां की सभी प्रविष्टियों के अन्तर्गत अधिक जानकारी (और वह भी दोषरहित) देकर, संस्कृत वाङ्मय कोश की इस नई दिशा में अधिक प्रगति अवश्य करेंगे। संस्कृत वाङ्मय की विविध शाखाओं एवं उपशाखाओं के अन्तर्गत अधिक से अधिक ग्रंथकारों तथा ग्रंथों का आवश्यकमात्र परिचय संक्षेपतः संकलित करने का प्रयास, इस कोश के संपादन में अवश्य हुआ है।
अति प्राचीन काल से लेकर 1985 तक के प्रदीर्घ कालखंड में हुए प्रमुख ग्रंथों और ग्रंथकारों को कोश की सीमित व्याप्ति में समाने का प्रयास करते हुए इसमें अपेक्षित सर्वंकषता नहीं आ सकी, तथापि सभी वाङ्मय शाखाओं का अन्तर्भाव इसमें हुआ है। वैसे देखा जाए तो प्रविष्टियों में दिया हुआ परिचय भी संक्षिप्ततम ही है। संस्कृत वाङ्मय में ऐसे अनेक ग्रंथ और ग्रंथकार हैं कि जिनका परिचय सैकड़ों पृष्ठों में पृथक् ग्रंथों द्वारा विद्वान लेखकों ने दिया है। आधुनिक लेखकों में भी ऐसे अनेक ग्रंथकार और ग्रंथ हैं कि जिनका परिचय सैकड़ों पृष्ठों के ग्रंथों में देने योग्य है। कई ग्रंथों और ग्रंथकारों पर बृहत्काय शोधप्रबंध अभी तक लिखे गए हैं और आगे चलकर लिखे जावेंगे। इस अवस्था में इस कोश की प्रविष्टियों में परिचय देते हुए किया हुआ गागर में सागर भरने का प्रयास देखकर "महाजनः स्मेरमुखो भविष्यति" यह तथ्य हमारी दृष्टि से ओझल नहीं हुआ है। परन्तु
For Private and Personal Use Only