________________ पल्योपम, सागरोपमादिकालमानकी व्याख्या गाथा-३-४ [ 31 84 लाख अर्थ निपूरांगोंसे 1 अर्थनिपूर 84 लाख अर्थ निपूरोंसे 1 अयुतांग 84 लाख अयुतांगोंसे 1 अयुत 84 लाख अयुतोंसे 1 प्रयुतांग 84 लाख प्रयुतांगोंसे 1 प्रयुत 84 लाख प्रयुतोंसे 1 नयुतांग 84 लाख नयुतांगोंसे 1 नयुत 84 लाख नयुतोंसे 1 चूलिकांग 84 लाख चूलिकांगोंसे 1 चूलिका 84 लाख चूलिकाओंसे 1 शीर्ष प्रहेलिकांग 84 लाख शीर्ष-प्रहेलिकांगोंसे 1 *शीर्ष-प्रहेलिका (संख्यात वर्ष) __ असंख्याता वर्षका (पल्य प्ररूपणासे) 1 पल्योपम (छह भेदोंका) 10 कोडाकोडी पल्योपमका 1 सागरोपम (कुल छह प्रकारका) 1 उत्सर्पिणी अथवा इतने ही 10 कोडाकोडी अद्धा-सागरोपमकी कालकी 1 अवसर्पिणी छः छः आरा प्रमाण 20 कोडाकोडी अद्धा-सागरोपमकी 1 कालचक्र होता है अथवा 1 उत्सर्पिणी अथवा 1 पुद्गल-परावर्त होता है 1 अवसर्पिणी मिलकर अनन्ता कालचक्रका | और वह चार प्रकारका है। // बादर-उद्धार-पल्योपम 1 // ४२उत्सेधांगुलके प्रमाण द्वारा निष्पन्न 1 योजन [चार कोस ] गहरा घनवृत्त कुआँ [लंबाई, चौड़ाई और गहराई तीनोंका प्रमाण समान होनेसे घनवृत्त कहा जाता है ] जिसकी परिधि 1 योजन लाभग होती है, वह कुआँ सिद्धान्तोक्त अभिप्रायसे * जैन धर्ममें सबसे बड़ी और संख्याताकी गिनतीमें यह संख्या है। जिसमें 54 अंक 140 शून्य है। सब मिलकर 194 अंकात्मक संख्या सबसे बड़ी है / शीर्षप्रहेलिका अंशोमें इस प्रकार है। 7682 632630730112411577369975696406218166848080183296 इसके आगे 140 शून्यांक होते हैं। ज्योतिकरंडमें 250 अंक बताये है / इतर ग्रन्थोंमें दूसरे प्रकारसे संख्यामान बताया है। 42. यह हमारा चालू माप है /