________________ जैनशास्त्रका आश्चर्यजनक विशाल संख्यक गणित गाथा 3-4 [ 29 77 लबोंसे अथवा 2 घड़ियोंसे अथवा 65536 / 1 (चान्द्र) मुहूर्त होता है / क्षुल्लक भवोंसे अथवा 16777216 आवलिकाओंसे 1 (एक सामायिक-काल) अथवा 3773 प्राणोंसे समयोन 2 घड़ियोंका 1 उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त होता है। अन्य प्रकारसेनिर्विभाज्य असंख्य समयका 1 निमेष 18 निमेषोंसे 1 काष्ठा 2 काष्ठाओंसे 15 लवोंसे 1 कला 2 कलाओंसे 1 लेश 15 लेशोंसे / १क्षण 6 क्षणोंकी 1 घटिका [असंख्याता समयोंका एक निमेष प्रमाण भी होता है। अष्टादश निमेषसे एक काष्ठा, 2 काष्ठासे एक लव, 15 लवोंसे 1 कला, 2 कलासे 1 लेश, 15 लेशोंसे 1 क्षण, 6 क्षणो से 1 घटिका (नाडिका), 2 घटिकासे 1 मुहूर्त ] . 30 मुहूर्तासे एक अहोरात्र (दिवस), 15 अहोरात्रों से 1 शुक्लपक्ष, वैसे ..ही दूसरे 15 अहोरात्रों का 1 कृष्णपक्ष, 2 पक्ष मिलकर 1 मास होता है, 2 मास मिलकर 1 ऋतु होती है। [ बारह मासोंकी-२ मासकी एक ऋतुके हिसाबसे 6 ऋतुएँ होती हैं / 1. हेमंत, 2. शिशिर, 3. वसंत, 4. ग्रीष्म, 5. वर्षा, और 6. शरद ऋतु] / तीन ऋतुएँ मिलकर 1 अयन, 2 अयनों से 1 संवत्सर, 5 संवत्सरों से 1 युग, 20 युगों से एक शत (100) वर्ष, दशशत (100) वर्षोसे एक सहस्र (1000) वर्ष, शतसहस्र वर्षोंसे एक लक्ष वर्ष, 84 लाख वर्षोंसे एक पूर्वाग, 70 लाख करोड़ 56 हजार करोड़ वर्षोंसे 1 पूर्व होता है, 84 लाख पूर्वोसे 1 त्रुटितांग होता है तथा इस त्रुटितांगकी संख्याको 84 लाखसे 25 बार गुणान करनेसे शीर्ष-प्रहेलिकाका प्रमाण आ जाता है। ये सब और इनसे आगेका प्रमाण ऊपरसे' चालू विवरणमें देखें / 'अष्टादश निमेषाः स्युः काष्ठा काष्ठाद्वयं लवः / कलाः तैः पञ्चदशभिर्लेशस्तद्वितयेन च // क्षणस्तैः पञ्चदशभिः, क्षणैः षड्भिस्तु नाडिका / ... सा धारिका-घटिका च मुहूर्तस्तद्वयेन च // त्रिंशता तैरहोरात्रः,...पञ्चदशाहोरात्रः स्यात् पक्षः, स बहुलोऽसितश्च / .. - पक्षी मासः / द्वौ द्वौ मार्गादिकावृतः // . शिशिरावैस्त्रिभिः त्रिभिः अयनम् , अक्ने द्वै क्सरः / [ हैमकोष ]