Book Title: Samveg Rangshala Author(s): Jayanandvijay Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti BhinmalPage 11
________________ आ ग्रन्थमां चार मुख्यद्वारनुं कथन करवामां आव्युं छे. संवेगगुणनी प्राप्ति थया पछी आराधना कया क्रमे करवी अथवा ए गुणने प्राप्त करवा पण आ आराधना केवी रीते करवी तेनुं आमां स्पष्ट वर्णन छे. आ चार द्वारो (१) परिकर्मविधि द्वार ( २ ) परगणसंक्रमण द्वार (३) ममत्वउच्छेद द्वार अने (४) समाधिलाभ द्वार छे. आ चारे मुख्य द्वारोमां पेटाद्वारो पहेलाना १५, बीजाना १०, त्रीजाना ९ अने चोथाना ९ छे. ते पेटाद्वारोनुं वर्णन विस्तारथी छे, जे जिज्ञासुओने वांची जवा भलामण छे. पहेला परिकर्मविधिद्वारमां आत्माने ते ते द्वारोमां बतावेली आराधना द्वारा संस्कारी बनाववानो छे. मोहराजानुं साम्राज्य गजबनुं छे. जीवने क्यां अने क्यारे फसावी दे, तेनो पत्तो नथी. माटे एना संकजामां जीव फसाई न जाय तेनी सावधानी माटे आ बधा पेटा द्वारोनी विधिपूर्वक आराधना करवानी कही छे.. आ द्वारमां साधु अने श्रावकना उपकरणोनुं जेम वर्णन छे, तेम गुरु पासेथी ग्रहणशिक्षा अने आसेवनशिक्षा लई आत्माना सम्यग् दर्शन, ज्ञान अने चारित्रनो विकास करनारा गुणोनुं पण वर्णन छे. अहिं ग्रहणशिक्षानो अर्थ ए समजवानो छे के, गुरु महाराज पासेथी साधुपणुं अने श्रावकपणुं शी रीते आराधवं एनी समजण लेवी अने आसेवन शिक्षानो अर्थ ए छे के, ए समजणने जीवनमां जीवीने आत्मसात् करवी. आ शिक्षाओ विनय विना आवती नथी माटे पेटाद्वारमां विनयद्वार पण पाडवामां आव्युं छे. विनयनो भंग करी जे साधु के श्रावक धर्ममां आगळ वधवा मागे छे, ते कदी पण आगळ वधी शकतो नथी. केम के परमात्मानुं शासन विनयने धर्मना मूळ तरीके ओळखावे छे. उत्तराध्ययन सूत्र जे प्रभुभाषित छे, तेना ३६ अध्ययनोमां पहेलुं अध्ययन विनय अध्ययन छे. केम के विनय न होय तो बाकीना अध्ययनमां बतावेला गुणो जीवनमां यथार्थरूपे आवी शकता नथी. माटे ज प्रथम अध्ययन विनयनुं राखवामां आव्युं छे. आ सिवायना बीजा प्रथम मुख्यद्वारना पेटाद्वारो जे समाधिद्वार, मनोनुसिट्ठीद्वार, अनियतविहारद्वार, राजद्वार वगेरे द्वारो जे बताववामां आव्या छे ते जिज्ञासुओने ग्रन्थमां जोई लेवानी अमारी भलामण छे. प्रत्येक पेटाद्वारनुं वर्णन जो करवामां आवे तो प्रस्तावना ज स्वयं एक ग्रन्थ बनी जाय. हवे बीजुं द्वार परगणसंक्रमण नामनुं छे. एना पेटाद्वारो १० छे. दरेके दरेक द्वारमां गुरुआज्ञानी मुख्यता, कषायने वोसिराववानी भावना, साधुने सर्वथा स्त्री परिचयनो त्याग, दश प्रकारनी सामाचारीनुं विधिपूर्वक पालन वगेरे बताववामां आव्युं छे. आ आचारोमां ज्यां ज्यां स्खलना थाय छे, त्यां त्यां गुरु-शिष्यभावमां खामी आवे छे. एक गच्छना आचार्य बीजा गच्छना आचार्य उपर जेवो वात्सल्यभाव राखवो जोईए तेवो राखी शकता नथी अने साधक सामाचारीनुं पालन करवामां शिथिल बनवाथी स्वच्छंदी बने छे. त्रीजुं मूलद्वार ममत्व उच्छेद नामनुं छे. आना नव पेटाद्वारो छे. तेमां शरूमां आलोचनाविधानद्वार मूकवामां आव्युं छे आत्माने हळवो करवा माटे प्रत्येक साधु अने श्रावके करेला पापनुं प्रायश्चित्त लेवानुं होय छे. तेमां प्रायश्चित्त केवी रीते लेवुं, एना आपनारनी लायकात, लेती वखतनी विधि वगेरेनुं वर्णन विस्तारथी करवामां आव्युं छे. आलोचना नही लेनार साधु श्रावक सशल्य कहेवाय छे, अने शल्यवाळो साधना करे तो पण ज्यां सुधी शल्यनी आलोचना न ले त्यां सुधी शुद्ध थतो नथी. वगेरे वगेरे घणो सुंदर विचार आमां करवामां आव्यो छे. आ द्वारमां शय्या - संथारो वगरे क्या करवो, प्रत्याख्यान आदि द्वारा शरीर, इन्द्रियोने अने मनने केवी रीते Jain Education International For Personal & Private Use Only V www.jainelibrary.orgPage Navigation
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