________________ 120 विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग राजाने कहा कि मेरा शरीर तो बराबर स्वस्थ है परन्तु दोनों स्त्रियों के बिना मेरा प्राण शीघ्र ही कहीं निकल न जाय / "धर्म क्रियामें सहाय, कुटुम्ब आपत्तिमें जो ठावलम्बन भारी। मित्र समान जो है विसवास में, श्रीभगिनी हित साधनकारी // मात पिता सम व्याधि उपाधिमें, संग पलंग में काम दुलारी। है न त्रिलोक में कोई कहीं पर, न्योनर के हितु गेह की नारी॥" क्योकि प्रथमतः धर्म को धारण करने वाली, कुटुम्ब पर आपत्ति काल होने पर अवलम्बन देने वाली, विश्वासमें सखी के समान, हित करने में भगिनी, लज्जाशील होने के कारण पुत्रवधू तुल्य, व्याधि और शोक में माता के समान, शय्या पर होने पर काम देने वाली इस प्रकार की भार्या के समान हितकारी तीनों लोकों में और कोई नहीं हो सकता है ? मन्त्रियों ने कहा कि 'हे स्वामिन् ! लक्ष्मी, पुत्र, स्त्री, ये सब मनुष्यको अनेक होते हैं, परन्तु जीवन बार बार नहीं मिलता / हजारों माता पिता, तथा सैंकोड पुत्र स्त्री इस संसारम बीत गये हैं। इसलिये इस संसार में किसी का कोई भी अपना नहीं है / जो प्रातःकाल देखनेम आता है वह मध्याह्नमें देखने में नहीं आता। तथा जो मध्याह्न देखने में आता है वह रात्रि में देखनेमें नहीं पाता। इस संसार में प्रत्येक पदार्थ अनित्य ही है।' ___ इस प्रकार मंत्रियों के समझाने पर बह कपटी चन्द्रशेखर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust