Book Title: Samvat Pravartak Maharaja Vikram
Author(s): Niranjanvijay
Publisher: Niranjanvijay

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Page 739
________________ विक्रम चरित्र जब ब्राह्मणने अपने जीव को उस तोते में डाल कर जीवित किया, उतने में वहां छिपकली-गिराली के शरीर में रहे हुए विक्रमादित्य महाराजा के जीवने शीव ही अपने शरीर में प्रवेश कर लिया. उस के सत्व, साहस, संकेत, बोलने और चलने आदि की सब क्रियाओं से मंत्री से लेकर सेवक तक सबने उन्हें विक्रमादित्य महाराजा के रूप में पहचाना, राजाने भी उन सब को अपना बना हुआ विस्तृत हाल सुनाया. यह सुन कर सब ताज्जुब हो गये. फिर राजाने तोते को हाथ में लेकर कहा, 'हे पापी ! दुष्ट आशयवाले, मैंने तुझे विद्यादान दिलाकर तेरे उपर उपकार किया, उस के बदले तुमने अपने स्वभाव अनुसार ही किया ? अतः तुझे धिक्कार है, लेकिन मैं दयापूर्ण हृदय से तुझे मारता नहीं हूँ, मैं यहां से तुझे ( तोता-शुक और महाराजा. चित्र न. 6.) मुक्त करता हूँ, तुम अपने स्थान पर चले जाओ, और आजीविका उपार्जन करो.' . . इस प्रकार कह कर चौथी चामरधारिणी बोली, 'हे विक्रमचरित्र! तुम्हारे पिता इस प्रकार कृपा-दया के धारण TEST FOR मामला Urgin HEL P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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