Book Title: Samvat Pravartak Maharaja Vikram
Author(s): Niranjanvijay
Publisher: Niranjanvijay

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Page 746
________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित एक दिन व्याख्यान देते हुए गुरुदेवने महातीर्थ श्री शत्रुजय का अच्छा सुंदर वर्णन किया. इस बिच में एक दिव्य कान्तिवाली अपरिचित कोई व्यक्तिने आकर गुरुदेवके चरणों में नमस्कार करके कहा, "हे गुरुदेव ! आपके प्रताप से देवलोंक में मैं कदर्पि यक्ष के रूप में उत्पन्न हुआ हूँ, लाख देवों का में स्वामी हूँ, मेरे योग्य कार्यसेवा फरमाईये." गुरुदेवने उसके साथ कुछ विचारणा की और रवाना किया. सूरीश्वरजी जावडशा से सब बात सविस्तर कहीं गुरुदेव के शब्दों से जाव उशा का हृदय आनंद का अनुभव करने लगा. उन्होंने श्रीशत्रुजय तीर्थ का संघ ले जाने की तैयारी की, तैयार हो जाने के बाद श्री वजस्वामीजी की निश्रा में बड़ी धामधूम से संघने प्रयाण किया. - रास्ते में जो भी उपद्रव होते थे वे सब श्री वजूस्वामीजी निवारण करते थे. आखिर वे तीर्थाधिराज शत्रुजय जा पहूँचे वहां बहुतसी अपवित्र वस्तुए पड़ी हुई थी, मदिरों में घांस दिखाई रही थी, जावडशाने शीघ्र ही वहां स्वच्छ करवाया, शत्रुजी नदी के निर्मल जल से पवित्र कर के मुख्य मंदिर में प्रतिमा को विराजमान की. इन मगल समये-प्रतिष्ठा निमिते जावडशाने बहुतसा द्रव्य का सद्व्यय किया. श्री वजूस्वामीजीने तीर्थ पर के उपद्रवों का निवारण किया. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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