Book Title: Samvat Pravartak Maharaja Vikram
Author(s): Niranjanvijay
Publisher: Niranjanvijay

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Page 745
________________ विक्रम चरित्र देश में भी जैन मदिर बनवाया, और धर्म ध्यान करते वही समय पसार करने लगे. ___एक दिन कोई ज्ञानी मुनि भगवंत विहार करते वहां पधारे धर्म देशना देते हुए ज्ञानी गुरुदेवने कहा, “जावडशा के हाथसें तीर्थाधिराज का जीर्णोद्धार होगा." यह सुन कर जावडशाने पूछा, "वे जावडशा कौन हैं ? " तब ज्ञानी गुरुदेवने पुनः कहा, "वे जावडशा तुम....तुम....” / जावडशा को उस ज्ञानी मुनि महाराजने शाश्वत श्री शत्रुजय तीर्थ को दुर्दशा सुनाई. और गुरुदे की आज्ञानुसार जावडशाने इस कार्य की सिद्धि के लिये चक्रेश्वरी देवी का आराधन किया. देवी प्रसन्न हुई. उनके आदेशानुसार 'तक्षशिला' नगरी से राजा ' जगन्मल्ल' द्वारा धर्म चक्र के पास से श्री ऋपभदेवजी की प्रतिमा ले कर वो पुनः अपनी मधुमतो में आये. जावडशा म्लेच्छों के हाथ में फंस गये थे उसी समय के पूर्व उन्होंने चीन आदि देशो में माल बेचने को बहुत से वहाण भेजे थे. पुण्य योग से वह आ गये, इस समाचार से जावडशा का हृदय आनंद से भर गया. उसी समय आनंद में श्री वजूस्वामीजी के पधारने के समाचार से अधिकता हुई, जावड़शा श्री वजूस्वामीजी को वंदना करने गये, श्री वजूस्वामीजीने देशना दी. ये देशना से सारे गांव में उत्साह छा गया. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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