Book Title: Samvat Pravartak Maharaja Vikram
Author(s): Niranjanvijay
Publisher: Niranjanvijay
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________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय सयोजित 655 ग्रंथकारकी भिन्न भिन्न प्रकार की प्रशस्तियाः लघु पौषध शाला के भूपणरूप अद्भत भाग्यवाले श्री मुनि सुंदरसूरीश्वरजी हुए, उन सूरी के शिष्य शुभशील नामक साधुने विक्रमादित्य राजाके चरित्र विक्रमराजा के चलाये गये संवत् 1499 वर्ष बाद रचना की.x . ॐ तपगच्छ के भूषण स्वरूप बारह वर्ष पर्यत आयंबिल xxलोक संख्या. सर्ग 12-395-396-397. * लसत्कियावारिविशिष्टसाधु मणि तपागच्छमहाम्बुराशिम् ; श्रीमान् जगच्चंद्रगुरुर्न वीनो, निशाकरोऽजीजनदेव वय: // 1 // चक्रे द्वादशवर्षाणि गेनाचाम्लतपोऽन्त्रहम् ; जगच्च द्रगुरुः सोऽस्तु तपागच्छकरः श्रिये // 2 // तत्पट्टेऽजनि देवेन्द्रसूरिरदद्भुतचित्र कृत् ; अवक्री कविसंसेव्योऽतिचार रहितः सदा // 3 // सत्तत्पट्टा खण्डलाशाद्रिशङगे, श्रीमान् विद्यान'दसूरि विवस्वान्; पापध्वान्त ध्वसयन् गोविलास-रासीत् प्राणिस्वान्तभमितलस्थम् // 4 // तत्सत्पदृव्यूढपाथोदमार्ग, तेजोराशिः ध्वस्तदोषाकरश्रीः; आसीत् श्रीमान् धर्म घोषावसूरि-श्चन्द्रोनव्यो भ्रान्तिरिक्तोऽक्षयी च / / 5 // तत्पढेऽजनि सर्वशास्त्रविद् श्रीसोमप्रभसूरिशेखरः; भव्याम्भोजवन विबोधयन् गोभिर्भानुरिवावनीतजे / / 6 / / तत्पदृगगनतरणिः, श्री सोमतिलकगुरुर जनि महिमनिधिः; येनानेके भव्याः प्रबोधिताः सदुपदेशेन // 7 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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