Book Title: Samvat Pravartak Maharaja Vikram
Author(s): Niranjanvijay
Publisher: Niranjanvijay

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Page 742
________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 649 - गंभीर वाणी से मुनि महाराज बोलते रहे. जैसे निर्मल पवित्रगंगा नदी का प्रवाह बह रहा हो, उन की वाणी में सत्य था, ज्ञान की ज्योत थी, धर्मपरायणता की चिनगारी थी. पूज्य मुनि महाराज की वाणी सुनते ही दंपती के हृदय में आनंद की लहेरों उठने लगी. कई दिनों वित गये, एक दिन घोडे बेचनेवाला वहां आया, भावडने ज्यों त्यों कर के उस की पास से घोडी खरीदी. घोडी घर में आते ही आनंद की वर्षा हुई. थोडे ही दिनों के बाद घोडीने बचेरा को जन्म दिया. उस बच्चे के जन्म से भावड के भाग्य में यकायक परिवर्तन आया. व्यापार बहुत बढ गया. कीर्ति प्रतिष्टा उन को ढुढती हुई आई. इस बाल अश्व को कांपिल्यपुरके राजा तपनरायने देखा. उस का मन आकर्षित हुआ. आखिर तीन लाख सोना महार देकर उस को खरीदा. - धन की अधिकता से व्यापार में होते हुए लाभ से उन्होंने बहुत से सुलक्षणवाले घोडे खरीदे, बेचे और धनोपार्जन किया. उन्होंने एक ही रूप और रंग के बहुत से घोडे इकट्ठे किये. भावड के भाग्य में ये परिवर्तन आया था, उसी समय महाराजा विक्रमादित्य अवंती में राज्य कर रहे थे. उन की कीर्ति की सुवास, उदारता की बातें सुन कर महाराजा को घोडे भेट करने की इच्छा भावड को हुई. वे अवंती आये. उन्हों P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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