________________ 237 साहित्य मी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित सिद्ध नहीं होता। इस प्रकार विचार करते करते अपने सब कार्य सिद्ध हुए मानता हुआ महाराजा अपने महलमें आये. और सुख शैयामें सुखपूर्वक सोये, सोते हुओ शीघ्र ही निद्रा'घिन हुए, क्योंकि शिरपर की चिंता आज दूर हो गई थी, इससे रातभर आनंदसे सोये। ... - प्रातःकाल होते ही मंगल शब्दोंसे जागरित हो महाराजाने प्रातः कार्य और देवदर्शन पूजन आदि कार्य निपटाकरः क्षेत्रपालका आह्वान् कर भक्तिपूर्वक आठ. मूटक प्रमाण बलि देकर, नाना प्रकार के सुगंधी पुष्पों से क्षेत्रपाल का बहुत ठाठ से पूजन किया। .बादमें महाराजा राजसभामें आकर देवदमनी के साथ चौसरबाजी खेलने लगे, पूर्व की तरह शामको राज महल में पधारे, भोजन आदि : अग्निवैताल हाजीर हुआ और कहने लगा, कि " हे राजन् ! क्या कार्य है बताईए R E PASHRS पुन्हा जी को भी .. . .. . 11... . .. .. . . . .... . .. ...... . . . .... . ... महाराजाने अग्निवैताल के आगे सब वृत्तान्त कहा और कहा देशी है. अभी ही सिद्धसीकोत्तरी के पर्वत पर जाना है; वहाँ पर इन्द्र को सभामें आज देवदमनी नृत्य करने वाली हैं. अग्निवेताल विक्रम महाराजा को कन्धे पर लेकर रात्रिमें सिद्धसीकोत्तरी पर्वतपर आ पहुंचा; इन्द्र की सभामें अदृश्य-गुप्त रूपमें अग्निवैतालं और महाराजा चपचाप आयो i T i STATE THE HERE THE Pos : P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust