________________ 460 विक्रम चरित्र - से वह आगामी जन्म में दरिद्री बनता हैं. दरिद्तावश वह अनेक पाप करता है. पाप करने से वह नरक में जाता है, और इस प्रकार बार बार वह दरिद्रता के चक्कर में ही घूमता रहता है.x . कृपणोपार्जित धन का भोग कोई भाग्यवान पुरुष ही करता है. जैसे की दात बडे कष्ट से अन्न को चाबते है, लेकिन जिह्वा तो बिना प्रयत्न किये ही उसे निगल जाती है. .. * एक कविने कहा है, "इस जगत में कृपण के समान दाता न कोई हुआ है और न होगा. क्यों कि कृपण तो बिना स्पर्श किये ही अपना सब धन दूसरो को दे देता है, अर्थात् दूसरा के लिये छोडकर मरता है. कृपण ही सच्चा त्यागी है, क्यों कि वह सब कुछ यहा पर ही छोड़कर जाता है. मैं दाता को ही कपण मानता हूँ. क्यों कि वह तो मरने पर भी धन को नहीं छोड़ता. अर्थात् दान, पुण्य कर के परभव में पुनः इस लक्ष्मी को प्राप्त कर लेता है. "कितना ही धनवान् कृपण हो, इस से क्या सुख लोगो का ? फलफूलों से लदा ढाक तरु, क्या फल देता जीवों का ?" * अदत्तदानाच्च भवेद् दरिद्रो, दरिद्रभावाद् वितनोति पापम् / पाप हि कृत्वा नरकं प्रयाति, पुनदरिद्रः पुनरेव पापी || 11/11 " P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust