Book Title: Samvat Pravartak Maharaja Vikram
Author(s): Niranjanvijay
Publisher: Niranjanvijay

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Page 731
________________ विक्रम चरित्र मन नहीं करना चाहिये, प्राण कंठ में आ जावे तब भी परेरापकार करना चाहिये. क्यों कि परोपकार करने से इस जन्म में और परलोक में भी सुख प्राप्त होता है. कहा भी है-- विरल पुरुष ही गुणों को जानते हैं, विरल पुरुष ही निर्धन व्यक्ति से स्नेह रखते हैं, स्वाभाविक गुणयुक्त विरलपुरुष ही इस प्रकार अपने दोषों को देखते है. सज्जन पुरुष अपने कार्यों से पराङ्मुख होकर भी पराये कार्य में तत्पर रहते हैं, जैसे कि चंद्रमा अपने कलंक को दूर करने की चिन्ता छोड कर पृथ्वी का उज्वल करता रहता है. आज देवता तथा दानवों का स्वर्ग में युद्ध होगा. मैं इन्द्र का नौकर हूँ, इस से वहां जाता हूँ, यह मेरी प्रिया स्वर्ग की युद्धभूमि में युद्ध करते समय निश्चय ही मुझे विघ्न रूप हो जाती है, अतः मैं अपनी पत्नी को अभी आप के पास छोडकर देवलोक में इन्द्र के पास युद्ध के लिये जाता हूँ, जब तक मैं वापस न लौटुं तब तक आप उसे अपने अन्तःपुर में रखकर यत्नपूर्वक इस की रक्षा करे.' इस प्रकार कहकर सभी सभासदों के देखते हुए वह वैतालिक खड्ग लेकर देवलोक में गया. कुछ ही क्षण बाद आकाश में युद्ध की ध्वनि सुनाई देने लगी. उसे सुन कर सभाजन आपस में कहने लगे, 'अभी देवता तथा दानवों का युद्ध चल रहा है.' तत्पश्चात् उस वैतालिक के अंग-दा हाथ, दो पैर, मस्तक, शरीर आदि क्रमशः एकएक राजसभा Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.

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