Book Title: Samvat Pravartak Maharaja Vikram
Author(s): Niranjanvijay
Publisher: Niranjanvijay

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Page 725
________________ विक्रम चरित्र कोई मायाविनी है,' राजाने उसे पूछा, 'तुझे किसने भेजा है, तब उसने कुछ जवाब नहीं दिया. राजाने उसे चाबुक आदि से खुब मारा तब उसने राजा के सामने अपनी माता का किया हुआ सब काम कह दिया. अपनी प्रिया को कुएं में गिरी हुई जान कर राजाने कहा, “मैं भी उसी कुए में गिरंगा.' मत्रियोंने कहा, 'हे राजन् ! आप छः महिने तक राह देखिये, उतावल नहीं कीजिये. धीरज से सत्र ठोक होगा.' फिर राजाने उस ब्राह्मणी को अपने देश से बाहर निकाल दिया, और उस के बाद अपने पुत्र का पुनः बडे धामधूम से जन्मोत्सव करवाया. अपने पुत्र के जन्मोत्सव का वृत्तान्त तक्षक के मुँह से सुन कर रुक्मिणोने कहा, 'हे कान्त ! मैं अपने पुत्र को देखना चाहती हूँ.' तक्षक की आज्ञा लेकर वह रात में राजमहल में आई, और अपने पुत्र को स्तनपान करा कर उसने गुप्त रूप से पुत्र के लिये आभूषण आदि भी रखे, सुबह राजाने पुत्रके पास सुंदर आभूषणादि देख अपनी पत्नी को आई हुई समझ कर प्रिया को पकड़ने के लिये दूसरे दिन रात्रि में सावधानी के साथ छिप कर खडा रहा.. रात्रि हुई और रुक्मिणी पुत्र को स्तनपान कराने के लिये आई, तब राजाने उसे पकडना चाहा पर पकड न सका, अव: दूसरे दिन राजा विशेष रूप से सावधान रहा, उसने अपनी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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