Book Title: Samvat Pravartak Maharaja Vikram
Author(s): Niranjanvijay
Publisher: Niranjanvijay

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Page 727
________________ विक्रम चरित्र मरने को तैयार हुई रुक्मिणी को कहा, 'हे पत्नी ! तुम अपने पति के जीते हुए काष्टभक्षण क्यों कर रही हो?' रुक्मिणी के पूछने पर मेघनादने उस के साथ का अपना सारा सम्बन्ध कह सुनाया.तब रक्मिणींने कहा, 'यदि आप मेरे दोनो पतियों को जिलाओगे तो मैं जीती रहूँगी, अन्यथा मैं भी मर जाऊंगी.' कर्म की विचित्रता देखीये, रुक्मिणी को तीन मति हुए. रुक्मिणी के कहने से मेघनादने शीघ्र अमृत छींट कर उन दोनों को जीवित किया. अब वे तीनों इकट्ठे हुए और तीनों पत्नी को ले जाने के लिये झगडने लगे. इस प्रकार कथा कह कर, वह पंडित पूछने लगा, “हे सभासदों ! बुद्धि से विचार कर कहिये कि, वह पत्नी किसकी होगी ?" कोई भी इस प्रश्न का जवाब न दे सका. तब विक्रमराजाने कहा, " मनुष्य जाति की होने से वास्तव में वह राजा की पत्नी होगी." इस प्रकार कथा सुन कर विक्रमादित्य महाराजाने उस पंडित शिरोमणि को दस करोड सोने की अशर्फिचा दी. इसी प्रकार दूसरा भी कोई पंडित महाश्चर्यकारी अच्छी मनोरंजक वार्वा विक्रमादित्य महाराजा के सामने कहता तो महार,जा उसे एक करोड अशर्फिया दे देते. इस तरह महाराजा विक्रमादित्य की उदारता बता कर उस चामरधारिणीने कहा, 'हे विक्रमचरित्र! आप उन जैसे किस प्रकार होंगे? आप में विक्रम महाराजा के समान बुद्धि Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.

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