Book Title: Samvat Pravartak Maharaja Vikram
Author(s): Niranjanvijay
Publisher: Niranjanvijay

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Page 728
________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 635 और उदारता कहों देखने में नहीं आई, उसीसे मुझे हंसी आई." यह विक्रमादित्य महाराजा का रोचक वृत्तान्त द्वितीय चामरधारिणाने विक्रमचरित्र और सभा के आगे कहा. ___पाठकगण ! देखीएं, महाराजा विक्रमादित्य में उदारता एवं बुद्धि चातुर्य. पूर्व के पूण्योदय से मानव सब कुछ प्राप्त कर सकता है; आत्मा में अनंत शक्ति है, परोपकार करना, दया का पालन करना, दीन दुःखी मानवबन्धुओं को सहायक होकर उद्धार करना यही उन्हों का सर्वोत्तम श्रेष्ठ कार्य जीवनभर रहा, जिस से आज दो हजार और पंदर वर्ष बितने पर भी 'परदुःखभंजन के नाम से सब कोई पुकारते हैं. वांचक आप भी उपरोक्त गुणों में से एक दो गुण अपने में उतारने का प्रयत्न करें. यही शुभेच्छा. . ग्रंथ-पंथ सब जगत के, बात बतावत दाय; / सुख दीये सुख होत है, दुःख दीये दुःख होय. काका पालन कार्य जीवनदायक होकर पदर वर्ष वित सडसठवाँ-प्रकरण जितने तारे गगन में, उतने वैरी होय; पूरव पूण्य जो तपे, बाल न बांका होय. विक्रमादित्य की सभा में जादुगर की इन्द्रजाल राजा विक्रमचरित्र के आदेश से तीसरी चामरधारिणी सभा समक्ष सुललित संस्कृत भाषा में इस प्रकार कहने लगी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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