Book Title: Samvat Pravartak Maharaja Vikram
Author(s): Niranjanvijay
Publisher: Niranjanvijay

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Page 711
________________ .. विक्रम चरित्र रखी, फिर गुरु को नमस्कार और गुणगान कर के पत्नी सहित अपने स्थान पर गये, आनंदपूर्वक सब लोगोंने भोजन किया. सुरसुंदरी को लेकर विक्रमादित्य महाराजा अग्निवैताल के साथ महोत्सवपूर्वक अपने स्थान पर लौटे. उसके रहने के लिये एक बडा महल बनवाया. रातदिन न्यायमार्ग से राज्य करते हुए उनका सुखपूर्वक समय बीतने लगा. इस प्रकार प्रथम चामरधारिणी स्त्रीने विक्रमादित्य महाराजा का रोमांचकारी वृत्तान्त कहा, फिर उसने विक्रमचरित्र को / कहा, "हे राजन् ! आप महाराजा विक्रमादित्य के समान कैसे हो सकते हो ?" पाठकगण ! अपनी बुद्धि-चतुराई से राजपुत्री सुरसुदरी को चार बार बुलवा कर उस से उत्सवपूर्वक विवाह किया. जब तक मनुष्य का पुण्य भंडार बलवान है, तब तक सर्वत्र उस को जय मिलता है. इस लिये हरेक प्राणियों को चाहिये की दया, परोपकार, प्रभुस्मरण, देवपूजा आदि मानवजीवन को सफल करनेवाले सद्कर्तव्य करते रहना, इस भव में और परभवमें वहीं पुण्य सदा सहाय करते है. बुद्धिमान मानव को अधिक कहने की क्या आवश्यकता. सुत दारा और लक्ष्मी, पापी के भी घर होय; संत समागम प्रभु-भजन, ए दो दुर्लभ होय.' P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust .

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