________________ श्री स्थं भनपार्श्वनाथाय नमः। छप्पनवाँ-प्रकरण ( ग्यारहवा-सर्गका आरंभ ) महाराजा विक्रमादित्य का पूर्वभव श्रवण व प्रायश्चित माया सुख संसारमें, वह सुख जगमें असार; धर्म कृपा से सुख मिले, वह सुख जगमें सार. ___ एक दिन धर्मोपदेश श्रवण के बादः विक्रमादित्य महाराजांने श्री सिद्धसेनदिवाकरसूरीश्वरजी महाराजसे पूछा, “हे गुरुदेव ! किस कर्म के प्रभाव से मुझे यह मनोहर राजलक्ष्मी की प्राप्ति हुई ? और कौन से शुभ कर्म से अग्निवैताल सदैव मेरे पास रहकर मेरा कार्य करता है, तथा किस कारण से भट्टमात्र के प्रति मेरी प्रीति में दिनोंदिन इतनी वृद्धि होती जा रही हैं ? अर्थात् इस अत्यधिक प्रीति का हेतु क्या है ? खपर नामक बलशाली चोर किस कर्म के बल से सहज ही में मेरे से मारा गया?" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust