________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरजनविजय संयोजित तब मृगावतीने पूछा, “तुम कन हो ?" ब्राह्मणने उत्तर दिया, "मैं एक ब्राह्मण हुँ ?" मृगावती बोली, “मुजे किसी पुरुष से बहका कर यहाँ क्यों ले आया है ?" उस ब्राह्मणने कहा, "हे मृगलोचनि ! कुछ भी हो, मैंने तो तेरे शरीर का स्पर्श तक भी नहीं किया है, तुमने ही मुझे जगाकर मोदक खिलाया. यदि तुम मोदक का मूल्य लेना चाहती हो तो ये मेरे पास मुंग हैं, सो ले जाओ, पर व्यर्थ प्रपंच क्यों करती हो ?" उस ब्राह्मण की निरस बात सुन उदास होकर मृगावती यहां से अपने घर लौट आई, और अपनी हवेली के झरोखे में बैठ कर मनमें सोचने लगी, " आज चन्द्रसेन कहां सोयेगा ?" इस बातका पता लगाने लगी. . कुछ देर के बाद झरोके में बैठी हुइ मृगावतीने दूरसे चन्द्रसेन को दीपक लेकर देवमंदिर की ओर जाते हुए देखा. तब वह भी पुनः मोदक का थाल भर के फिर से उस मंदिर की ओर चली. शास्त्र में कहा है कि"उल्लु अंध दिवस में होता, रात्रि अंध होता है काक; कामीजन तो सदा अंध ही, देखता नहीं है दिनरात." उल्लु पक्षी को दिन में कुछ नहीं दिखता, इसी तरह कौए को रात्रि में कुछ नहीं दीख पडता है. किन्तु कामी पुरुष तो कोई अपूर्व प्रकार का अंघे है, जो कि रात और 1 धुवड पक्षी. P.P.AC.GunratnasuriM.S. . Jun Gun Aaradhak Trust