________________ 448 विक्रम चरित्र रूपचंद्र जब किसी वस्तु के लिये कहता था, तब वह दूकानो से उठा कर शीघ्र ला देता था. . जब रूपचंद्र अग्निवैताल पर चढ कर महाराजा विक्रम की राजसभा में पहूँचा. तब महाराजा सहित मंत्रीगण रूपचंद्र के साहस से प्रसन्न तथा आश्चर्यचकित हो गये. रूपचंद्र जब अग्निवैताल के द्वारा मंगवा कर सुंदर वस्त्रादि मंत्रियो को देने लगा तो, वे मंत्री लोग आदि भय से इधर उधर भागने लगे. रूपचंगने मंत्रियों से कहा, " आप लोग भागते क्यों है ? यह अग्निवैताल मेरे वश में है, यह मेरी आज्ञा के विरुद्ध कुछ नहीं कर सकता है. आप लोग इन वस्त्रों को धारण कीजिये.' तब मंत्रिगण रूपचंद्ग से दिये गये वस्त्र स्वीकार कर हर्षित हुए. महाराजा विक्रम रूपचंद्र की इस वीरता से बहुत प्रसन्न हुए, और उन्होंने उसका पूर्ण सन्मान किया. इस प्रकार अग्निवैताल और रूपचंद्ग में गाढ प्रेम हो गया. अग्निवैताल जैसे रूपचंद्ग के अधीन था, उसी प्रकार रूपचंद्ग भी राजा का भक्त बन गया. राजा विक्रमने रूपचंग का नाम अघट रक्खा. क्यों कि उसने किसी से भी नहीं होनेवाला अघटित काम कर दिखाया था. तब से जनता में राजकुमार पचन्द्र अघटकुमार के नाम से प्रसिद्ध हुआ. Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.