________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय सयोजित 373 चैत्रपुर की सारी जनता भी ताज्जूव हो गई और सेठ की उदारता की प्रशंसा करने लगी. जैसे चन्द्र विकासी कमल-कुमुदीनी चन्द्रमा को देख खिल उठती है उसी प्रकार सपरिवार विक्रमादित्य महाराजा को देख धनद् अति प्रसन्न हुआ. धनद् सेठने स्वादिष्ट भोजन पेयपान, वस्त्र, आभूषण आदि से महाराजा का अपूर्व स्वागत किया. महाराजा के आने के पश्चात् सारे नगर को तोरणपताका-आदि से सज्जित कर 'शुभ दिन और शुभ मुहूर्त में 'विवाह का कार्य प्रारंभ किया गया, निश्चित समय पर वरात रवाना हुई; वर अपूर्व सुसज्जित रथमें बैठा था, विक्रम महाराजा अपने शस्त्रादि से सज्जित हुआ, और पूरे लश्कर के साथ होने से बरात की शोभा और भी जादा बढ़ गई. धनद्कुमार का छठी का जागरण की बात पूर्ण स्मरण के कारण कर्म-अधिष्टायक देवी-विधाता के लेख के अनुसार कोई वाघ वरको / न मार दें इस से सचेत-सावधान होकर महाराजाने लश्कर को ढाल, तलवार आदि नाना प्रकार के हथियारों से सुसज्जित कर वर-धनद्कुमार की रक्षा के लिये चारों ओर कड़ा पहरा का बंदोबस्त लगा दिया. धनद्कुमार-वर महाराजा आदि से रक्षित होता हुआ, ठीक समय पर विवाह मंडप में पहूँचा. वहाँ विधिविधानपूर्वक विवाह कार्य होने लगा, बरात में आये हुए लोग भी मंडप में अपने अपने योग्य स्थान पर बैठ गये; उस समय भी महा P.P.AC.Gunratnasuri-M.S. Jun Gun Aaradhak Trust .