________________ विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग मी 166 कारण पूर्व जन्म का स्मरण करके दोनों ने मौन धारण कर लिया है। ___ यह सुनते ही राजा अरिमर्दन के पुत्र और पुत्रवधू दोनोंने सांसारिक मोह को त्याग करके, इस भयानक संसार समुद्र को. पार करने के लिये, गुरु के समीप दीक्षा व्रत ग्रहण कर लिया। अत्यन्त तीव्र तपस्या करके समस्त कर्म बन्धनों को नाश कर केवल ज्ञान को प्राप्त करके क्रमशः मोक्ष को प्राप्त करेंगे। क्योंकि 'जिस कम बन्धन को कोटि जन्मोंमें, तीव्र तपस्या से नष्ट , नहीं करते हैं, उसी को लोग समता का अवलम्बन घर के आधे क्षण में ही नष्ट कर देते हैं। क्षण म हा नष्ट कर दत हा इस प्रकार की धर्म देशना सुनकर राजा अरिमर्दनने पूछा कि 'हे गुरो ! मैंने ऐसा कौनसा पुण्य कार्य किया जिससे इस जन्म में मेरा सब कोई अभिलाषित सिद्ध हुआ एवं आश्चर्यकारी राज्य लक्ष्मी को पाया ?' __ तब गुरु ने कहा कि "तुमने पूर्व जन्म में श्री जिनेश्वरदेव की भावसहित पूजा की थी। इससे इस जन्म में तुम्हारे सब मनोरथ पूर्ण हुए हैं। ___ इस प्रकार राजा अरिमर्दन जिनधर्म का प्रभाव सुनकर तथा. श्री गुरुदेव के समीप सम्यक्त्व व्रत ग्रहण करके अपनी प्रिया के साथ घर पर आया / शुद्ध सम्यक्त्व के पालन करने से क्रमशः सब कर्म-बन्धनों को नष्ट करके मोक्ष को प्राप्त किया। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust