________________ 204 साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित लकड़ी बेचने वाले ने कहाकि 'अच्छा हुआ क्योंकि आज हमें लकड़ों का मूल्य अधिक मिलेगा / ' इस प्रकार राजा और मंत्री वहां से और आगे चले और नगर से बाहर आये / राजाने पुनः मंत्रीश्वर से कहाकि 'अब अहिर रबारी की स्त्री का सन्मान करने की मेरी इच्छा हो रही है। भट्टमात्र ने कहाकि 'उन लोगों की भी ऐसी ही शुभ इच्छा होगी।' फिर बादमें भट्टमात्र तथा विक्रामादित्य दोनों बाहर गये / और एक वृद्ध रबारी को देखकर मंत्री कहने लगेकि 'राजाविक्रमादित्य आज मर गया है / ' - यह बात सुनकर वह गोरस के पात्रों को तोड़कर उसी समय अत्यन्त रोदन करने लगीकि 'हे वत्स विक्रमादित्य ! करुणा सागर !! तुम कहां चले गये / तेरे बिना यह पृथ्वी अब कौन पालन करेगा। इस प्रकार उसको रोदन करती हुई देखकर राजा प्रगट हुआ और उसको अपने महल लेजाकर बहुत सा धन देकर उसका सम्मान किया। ___ राजा से बहुत धन प्राप्त करके वह अत्यन्त प्रसन्न हुई और पुनः प्रसन्नता पूर्वक शीघ्र ही अपने घर चली आई। इन उपरोक्त दोनों घटनाओं से महाराजा विक्रमादित्य को यह निश्चय होगया कि जिस मनुष्य की जैसी भावना होगी उसे वैसा ही फल मिलेगा। नीति के अनुसार यह भी ठीक ही कहा है कि "जैसी दृष्टि वैसी सृष्टी / " P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust