________________ - साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित पहुँचे / वहाँ पर घूमते घूमते लोगोंको परस्पर बातें करते महाराजाने ईस तरह सुना कि-''महाराजाने देवदमनी के साथ द्यत खेलनेका आरंभ करके व्यर्थ ही दुःखको आमंत्रण दिया, यह दुष्ठबुद्धि देवदमनी राजाजीको अवश्य कष्टमें डालेगी, यह तो देवताओं का भी दमन करती है, "इसीलिये लोग उसको देवदमनी कहते हैं / " देवदमनी के . बारेमें अनेक प्रकारकी विचित्र बातें सुनकर महाराजा . अपने महलमें आये, सुख शैयामें सोये किन्तु नींद नहीं आयी, शैय्यामें सोते सोते विचारने लगें, कि - इसको में किस तरह पराजित कर शकु; कोई उपाय सूझमें नहीं आता.' थकावट के कारण अन्तिम - रात्रिमें थोडी नींद आयी.. प्रातःकाल होते ही मंगलशब्दों के साथ महाराजा जागृत होकर, नित्यकार्य और देवदर्शन-पूजा आदि कर राजसभामें आये, पूर्व दिनकी तरह चौसरबाजी खेलने लगें. खेलते खेलते. आज तीसरा दिन भी बीता;-सांयकाल का भोजन, देवदर्शन आदि नित्यकर्म कर रात्रि होते ही हमेशकी तरह अंधेर पछेड़ा ओढकर नगरीमें भ्रमण करने निकले। - धूमते धूमते " महाराजा नगरीके बाहर आये, जहां पर गन्धवाहा नामका स्मशान है उसके पासमें ही एक देवकुलीका४ रजक-धोबी, 5 घांसी-तेली, 6 माछिक-मच्छीमार, 7 दर्जी, 8 भिल्ल, 9 शिकारी, यह नव - कारु जाति कही जाती है / नारु :-1 सोनी, 2 हजाम, 3 कंदोई-मीठाइवाला 4 खेती करनेवाले-किसान, फूलमाली, 6 काछिक-खटिक तरकारी-शाक बेचने-- वाला, "तांबुलिक-पानवाला, 8 गन्धर्व-गायक वर्ग 9 कुम्भकार-कुम्भार यहः गव नाई जाति कही जाती हैं: fis WHERE P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust