________________ विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग , " . . सौ रथ, अठारह लाख घोड़े, छः हजारः हाथी, खच्चर, ऊँट वृषभ आदि तथा स्त्री पुरुषों की संख्या की तो कोई गणना नहीं थी / . . art देवालय के पताकाओं में लगी हुई किंकिणियों (घुघरीयां) के मधुर शब्द जैसे समस्त देश के संघों को आमंत्रित करते हों इस प्रकार लगते थे / विक्षालस्कन्ध, सुन्दर आकृति तथा अनेक आभूषणों से भूषित. हस्ती के समान गतिवाले वृषभ रथको धारण करते थे। देवालय के चारों कोणों पर दिव्य रूप वाले सुन्दर आभूषणों से सुशोभित मृग के समान नेत्रवाली स्त्रियां चामर लेकर खड़ी थी / श्रीजिनेश्वर प्रभु के गीतों को मधुर ध्वनि से गाति हुई चामर को बुला रही थी। - इस प्रकार स्नात्र पूजा, ध्वजारोपन आदि करता हुआ तथा प्रभावना देता हुआ चतुविध श्री संघ एक गांव से दूसरे गांव चलता चलता महाराजा विक्रमादित्य श्री संघ के सहित श्री शत्रुञ्जय महातीर्थ के समीप पहुच गया / तरण तारण, परमपवित्र श्री शत्रुजयगिरीराज का दूर से दर्शन करते ही गजा विक्रमादित्य और सकल संघ के यात्रिक गण भाव उल्लास से नाच उठे और आज का दिन अतीव उत्तमोत्तम मनाने लगे / प्रेम भाव से गिरिराज की वन्दना की। बाद में श्री शत्रुञ्जय की तलेटी में संघ अति उत्साह से धूमधाम पूर्वक आ पहुँचा / याचकों को यथेच्छ दान देता हुआ श्री जिनेश्वरदेव को प्रणाम करने के लिये श्रीशत्रुञ्जय गिरिराज पर चढ़ा / स्नात्र पूजा, ध्वजारोपण, आदि P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust