________________ विक्रम-चरित्र द्वितीय भाग तब भीमने कह दिया कि "तुमने हाथ से सीढी का स्पर्श कर लिया है इसलिये यह सिढी लेकर अपने घर जाओ।' इस प्रकार छलित होकर श्रीदत्त किंकर्तव्यमूढ (असमंजस) हो गया / इधर भीमने रूपवती को भी व्यभिचारिणी समझकर घर से बाहर निकाल दी तथा विनय, शील सम्पन्न दूसरी स्त्री से उत्सव पूर्वक विवाह कर लिया / क्योंकिः-नन्द मन्त्री चाणक्यने ठीक कहा है "छोड़ो धर्म दया से हीन,तजो गुरू जो क्रिया विहीन ... कुल्टा धरनी से मुख मोड़,प्रेम रहित भाई को छोड़ // 25 // "5 "दया से रहित धर्म का त्याग कर देना चाहिये, क्रिया से . हीन गुरु का त्याग कर देना चाहिये, दुश्चारिणी स्त्री का त्याग कर देना चाहिये / तथा स्नेह हीन बान्धवों का त्याग कर . देना चाहिये / ' इसी प्रकार भीमके समान, जो मनुष्य श्रेष्ट व्यक्तियों के वाक्य को स्वीकार करता है, उसका सब मनोरथ सिद्ध हो जाता है / इसमें तनिक भी संशय नहीं है। पाठक गण ! आपने इस प्रकरण में भीम के द्वारा ली गई चारों बुद्धियों की अपूर्व कथायें आदि पढ़कर आनन्द प्राप्त किया होगा / अब आगे के प्रकरण में आप रत्न केतुपुर की रोचक कहानी पढ़कर आनन्द प्राप्त करें। म त्यजेद् धर्म दयाहीनं, क्रियाहीनं गुरुत्यजेत् / .दुश्चारिणीं त्यजेद् भाया निःस्नेहान बान्धवान् त्येजत्॥१०.३६।।८ P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust