________________ सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड 1 [सम्मतिप्रकरण-आद्य गाथा ] सिद्ध सिद्धत्थाणं ठाणमणोवमसुहं उवगयाणं / .. कुसमयविसासणं सासणं जिणाणं भवजिणाणं // 1 // (त.वि ) अस्याश्च समुदायार्थः एतत्पातनिकयव प्रकाशितः, अवयवार्थस्तु प्रकाश्यते / 'शास्यते / जीवाऽजीवादयः पदार्था यथावस्थितत्वेनानेनेति शासनं - द्वादशांगम् / तच्च सिद्धं प्रतिष्ठितं निश्चितप्रामाण्यमिति यावत् स्वमहिम्नव, नातः प्रकरणात प्रतिष्ठाप्यम् / / [प्रामाण्यं स्वतः परतो वेति वादप्रारम्भः ] (त. वि.) अत्राहुर्मीमांसका:-अर्थतथात्वप्रकाशको ज्ञातृव्यापारः प्रमाणम्, तस्यार्थतथात्वप्रकाशकत्वं प्रामाण्यम् / तच्च स्वतः (1) उत्पत्ती, (2) स्वकार्ये यथावस्थितार्थपरिच्छेदलक्षणे, (3) स्वज्ञाने च; विज्ञानोत्पादकसामग्रीव्यतिरिक्तगुणादिसामग्रयन्तर-प्रमाणान्तर-स्वसंवेदनग्रहणानपेक्षत्वात् / अपेक्षात्रयरहितं च प्रामाण्यं स्वत उच्यते इति / अत्र च प्रयोगः "ये यद्धावं प्रत्यनपेक्षास्ते तत्स्वरूपनियताः यथाऽविकला कारणसामग्र कूरोत्पादने / अनपेक्षं च प्रामाण्यमुत्पत्ती, स्वकार्ये ज्ञप्तौ च" इति / के गुणों के प्रकाशन द्वारा शासन की स्तवना करने वाली प्रथम गाथा को इस प्रकार कहते हैं"सिद्धं सिद्धत्थाणं"..."इत्यादि मूलगाथा 1 अर्थः-(रागद्वेषात्मक) भव के विजेता, अनुपमसुखवाले स्थान को प्राप्त, जिनों का (यानी सर्वज्ञों का, शासन) (प्रमाण से) सिद्ध अर्थों का (निरूपण करनेवाला) शासन, मिथ्यामतों का विघटन करने वाला एवं सिद्ध है (यानी स्वत: प्रमाणभूत है)। [ यहाँ 'जिणाणं' पद को कर्ता में षष्ठी और 'सिद्धत्थाणं' यहाँ कर्म में षष्ठी विभक्ति लगी है और दोनों का अन्वय 'सासणं' पद के साथ है ] व्याख्या:-इस मूल गाथा का समुदायार्थ पूर्व अवतरणिका से व्यक्त किया, अब अवयवार्थ यानी पदों का अर्थ प्रकाशित किया जाता है, वह इस प्रकार है 'शासन':-अर्थात् जीव अजीव आदि पदार्थ यथार्थ स्वरूप से जिसमें प्रकाशित होते हैं वह शासन कहा जाता है और वह 'द्वादशांग' स्वरूप है। वह सिद्ध - प्रतिष्टित है अर्थात् उसका प्रामाण्य सुनिश्चित है / यह प्रामाण्य अपनी महिमा के द्वारा ही स्वतः सिद्ध है, वास्ते इसी प्रकरण से सिद्ध करने की जरूर नहीं है। यहाँ स्व का अर्थ है स्वकीय, यानी स्व के उपदेशक जिनादि, उनकी महिमा से (यानी परतः) ही शासन-प्रवचन का प्रामाण्य सुस्थित है / मीमांसक वेद का प्रामाण्य स्वतः मानता है किंतु उपदेशक की महीमा से नहीं, इसलिये अब उसके मत की परीक्षा का प्रारम्भ हो रहा है [मीमांसक का स्वतः प्रामाण्य पक्ष ] [ संदर्भ:-अब पूर्वपक्षी मीमांसक स्वतःप्रामाण्य का संक्षिप्त प्रतिपादन करेगा। उसके सामने उत्तरपक्षी परतः प्रामाण्यवाद की संक्षिप्त स्थापना करेगा / पूर्वपक्षी मीमांसक विस्तार से उसका खण्डन करेगा और अपने पक्ष की पुनः प्रतिष्ठा करेगा। उसके सामने उत्तरपक्षी विस्तार से स्वतः प्रामाण्य का खण्डन करके स्वपक्ष की प्रतिष्ठा करेगा।] * द्रष्टव्य शास्त्रवार्ता० स्त० 7- श्लो० 27 पृ. 99 पं. 1 /