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कहान जैन शास्त्रमाला]
कर्ता-कर्म-अधिकार
[ उपजाति] एकस्य जीवो न तथा परस्य चिति द्वयोाविति पक्षपातौ। यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव।। ३१-७६ ।।
[रोला] एक कहे ना जीव दूसरा कहे जीव है, किन्तु यह तो उभय नयों का पक्षपात है । पक्षपात से रहित तत्व वेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है।७६ ।।
अर्थ:- जीव जीव है ऐसा एक नयका पक्ष है और जीव जीव नहीं है ऐसा दूसरे नयका पक्ष है; इस प्रकार चित्स्वरूप जीव के सम्बन्धमें दो नयोंके दो पक्षपात है। जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है उसे निरन्तर चित्स्वरूप जीव चित्स्वरूप ही है ।।३१-७६ ।।
[उपजाति] एकस्य सूक्ष्मो न तथा परस्य चिति द्वयोाविति पक्षपातौ। यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव।। ३२-७७।।
[रोला] एक कहे ना सुक्ष्म दूसरा कहे सुक्ष्म है, किन्तु यह तो उभय नयों का पक्षपात है । पक्षपात से रहित तत्व वेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है।७७।।
अर्थ:- जीव सुक्ष्म है ऐसा एक नयका पक्ष है और जीव सुक्ष्म नहीं है ऐसा दूसरे नयका पक्ष है; इस प्रकार चित्स्वरूप जीव के सम्बन्धमें दो नयोंके दो पक्षपात है। जो तत्त्ववेत्ता पक्षपातरहित है उसे निरन्तर चित्स्वरूप जीव चित्स्वरूप ही है ।।३२-७७।।
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