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समयसार - कलश
[ मालिनी ] निजमहिमरतानां भेदविज्ञानशक्त्या भवति नियतमेषां शुद्धतत्त्वोपलम्भः । अचलितमखिलान्यद्रव्यदूरेस्थितानां भवति सति च तस्मिन्नक्षयः कर्ममोक्षः ।। ४-९२८ ।।
[ रोला ]
भेदज्ञान की शक्तिसे निज महिमा रत को ।
शुद्धतत्व की उपलब्धि निश्चित हो जावे ।। शुद्धतत्व की उपलब्धि होनेपर उसके । अति शिघ्र ही सब कर्मोंका क्षय हो जावे ।। १२८ ।।
खंडान्वय सहित अर्थः- “ एषां निजमहिमरतानां शुद्धतत्त्वोपलम्भः भवति'' [ एषां ] ऐसे जो है, कैसे ? [ निजमहिम ] जीवके शुद्ध स्वरूप परिणमनमें [रतानां] मग्न हैं जो कोई, उनको [ शुद्धतत्त्वोपलम्भः भवति ] सकल कर्मोंसे रहित अनंत चतुष्टय विराजमान ऐसा जो आत्मवस्तु उसकी प्राप्ति होती है। ‘नियतम्’' अवश्य होती है। कैसा करके होती है ?
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[ भगवान् श्री कुन्दकुन्द -
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' भेदविज्ञानशक्त्या [ भेदविज्ञान ] समस्त परद्रव्योंसे आत्मस्वरूप भिन्न है ऐसे अनुभवरूप [ शक्त्या ] सामर्थ्यके द्वारा । '' तस्मिन् सति कर्ममोक्षः भवति ' [ तस्मिन् सति ] शुद्धस्वरूपकी प्राप्ति होनेपर [ कर्ममोक्षः भवति ] द्रव्यकर्म भावकर्मका मूलसे विनाश होता है। ‘अचलितम्'' ऐसा द्रव्यका स्वरूप अमिट है । कैसा है कर्मक्षय ?' ' अक्षय: आगामी अनंत काल तक और कर्मका बंध नहीं होगा। जिन जीवोंका कर्मक्षय होता है वे जीव कैसे हैं ? " 'अखिलान्यद्रव्यदूरेस्थितानां " [अखिल ] समस्त ऐसे जो [ अन्यद्रव्य ] अपने जीवद्रव्यसे भिन्न सब द्रव्य, उनसे [ दूरेस्थितानां ] सर्व प्रकार भिन्न हैं ऐसे जो जीव, उनके।। ४–१२८।।
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