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कहान जैन शास्त्रमाला]
स्याद्वाद-अधिकार
२३७
[अनुष्टुप] एवं तत्त्वव्यवस्थित्या स्वं व्यवस्थापयन् स्वयम्। अलंघ्यशासनं जैनमनेकान्तो व्यवस्थितः ।। १७-२६३।।
[दोहा] अनेकान्त जिनदेव का शासन रहा अलंघ्य । वस्तु व्यवस्था थापकर थापित स्वयं प्रसिद्ध ।।२६३ ।।
खंडान्वय सहित अर्थ:- "एवं अनेकान्तः व्यवस्थितः' [ एवं] इतना कहनेसे [अनेकान्तः] स्याद्वादको [व्यवस्थितः] कहनेका आरम्भ किया था सो पूर्ण हुआ। कैसा है अनेकान्त ? "स्वं स्वयम व्यवस्थापयन" [स्वं] अनेकान्तपनेको [स्वयम] अनेकान्तपनेके द्वारा [ व्यवस्थापयन ] बलजोरीसे प्रमाण करता हुआ। किसके साथ ? "तत्त्वव्यवस्थित्या'' जीवके स्वरूपको साधनेके साथ। कैसा है अनेकान्त ? ''जैनम्'' सर्वज्ञवीतराग प्रणीत है। और कैसा है ? "अलंघ्यशासनं" अमिट है उपदेश जिसका ऐसा है।। १७–२६३।।
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