Book Title: Samaysara Kalash
Author(s): Amrutchandracharya, 
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 269
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 卐 -१२साध्य-साधक-अधिकार 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 [वसन्ततिलका] इत्याद्यनेकनिजशक्तिसुनिर्भरोऽपि यो ज्ञानमात्रमयतां न जहाति भावः। एवं क्रमाक्रमविवर्तिविवर्तचित्रं तद्रव्यपर्ययमयं चिदिहास्ति वस्तु।।१-२६४ ।। [रोला] इत्यादिक अनेक शक्ति से भरी हुई है। फिर भी ज्ञानमात्रमयता को नहीं छोड़ती।। और क्रमाक्रमभावों से जो मेचक होकर। द्रव्य और पर्यायमयी चिद्वस्तु लोक में।।२६४ ।। खंडान्वय सहित अर्थ:- "इह तत् चिद् वस्तु द्रव्यपर्ययमयं अस्ति'' [इह ] विद्यमान [ तत्] पूर्वोक्त [ चिद् वस्तु] ज्ञानमात्र जीवद्रव्य [ द्रव्यपर्ययमयं अस्ति] द्रप्र-गुण-पर्यायरूप है। भावार्थ इस प्रकार है कि जीव द्रव्यका द्रव्यपना कहा। कैसा है जीवद्रव्य ? "एवं क्रमाक्रमविवर्तिविवर्तचित्रं'' [एवं] पूर्वोक्त प्रकार [ क्रम] पहला विनशे तो अगला उपजे [अक्रम] विशेषणरूप है परन्तु न उपजे न विनशे, इस रूप है [विवर्ति] अंशरूप भेदपद्धति उससे [ विवर्त] प्रवर्त रहा है [ चित्रं] परम अचम्भा जिसमें ऐसा है। भावार्थ इस प्रकार है कि क्रमवर्ती पर्याय अक्रमवर्ती गुण इस प्रकार गुण-पर्यायमय है जीववस्तु। और कैसा है ? ' यः भावः इत्याद्यनेकनिजशक्तिसुनिर्भर: अपि ज्ञानमात्रमयतां न जहाति'' [ यः भावः ] ज्ञानमात्र जीववस्तु [इत्यादि] द्रव्य गुण पर्याय इत्यादिसे लेकर [अनेकनिजशक्ति ] अस्तित्व वस्तुत्व प्रमेयत्व अगुरुलघुत्व सूक्ष्मत्व कर्तृत्व भोक्तृत्व सप्रदेशत्व अमूर्तत्व ऐसी है। अनन्त गणनारूप द्रव्यकी सामर्थ्य उससे [ सुनिर्भरः] सर्व काल भरितावस्थ है। [अपि] ऐसा है तथापि [ज्ञानमात्रमयतां न जहाति] ज्ञानमात्र भावको नहीं त्यागता है। भावार्थ इस प्रकार है कि जो गुण है अथवा पर्याय है वह सर्व चेतनारूप है, इसलिए चेतनामात्र जीववस्तु है, प्रमाण है। भावार्थ इस प्रकार है कि पूर्वेमें हूंडी लिखी थी कि उपाय तथा उपेय कहूँगा। उपाय - जीववस्तकी प्राप्तिका साधन। उपेय - साध्यवस्तु। उसमें प्रथम ही साध्यरूप वस्तुका स्वरूप कहा, साधन कहते हैं।। १-२६४।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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