Book Title: Samaysara Kalash
Author(s): Amrutchandracharya, 
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 281
________________ २५० Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार - कलश [ मालिनी ] अविचलितचिदात्मन्यात्मनात्मानमात्मन्यनवरतनिमग्नं धारयद् ध्वस्तमोहम् । उदितममृतचन्द्रज्योतिरेतत्समन्ताज्ज्वलतु विमलपूर्णं निःसपत्नस्वभावम्।। १३-२७६ ।। [ दोहा ] मोह रहित निर्मल सदा अप्रतिपक्षी एक । अचल चेतनारूप में मग्न रहे स्वयमेव ।। परिपूरण आनन्दमय अर अद्भुत उद्योत । सदा उदित चहु ओर से अमृतचन्द्रज्योति ।। २७६ ।। [ भगवान् श्री कुन्दकुन्द - खंडान्वय सहित अर्थ:- '' एतत् अमृतचन्द्रज्योतिः उदितम्'' [ एतत् ] प्रतयक्षरूपसे विद्यमान [ अमृतचन्द्रज्योतिः] ‘अमृतचंद्रज्योति:' इस पदके दो अर्थ हैं। प्रथम अर्थ - [ अमृत ] मोक्षरूपी [चन्द्र] चन्द्रमाका [ ज्योतिः ] प्रकाश [ उदितम् ] प्रगट हुआ। भावार्थ इस प्रकार है कि शुद्ध जीवस्वरूप मोक्षमार्ग ऐसे अर्थका प्रकाश हुआ। दूसरा अर्थ इस प्रकार है कि [ अमृतचन्द्र ] अमृतचन्द्र नाम है टीकाके कर्ता आचार्यका सो उनकी [ ज्योतिः ] बुद्धिका प्रकाशरूप [ उदितम् ] शास्त्र सम्पूर्ण हुआ। शास्त्रको आशीर्वाद देते हुए कहते हैं- " निःसपत्नस्वभावम् समन्तात् ज्वलतु '' [ निःसपत्न ] नहीं है कोई शत्रु जिसका ऐसा [ स्वभावम् ] अबाधित स्वरूप [ समन्तात् ] सर्व काल सर्व प्रकार [ ज्वलतु] परिपूर्ण प्रतापसंयुक्त प्रकाशमान होओ। कैसा है ? " विमलपूर्णं' [ विमल ] पूर्वापर विरोधरूप मलसे रहित है तथा [ पूर्णं ] अर्थसे गंभीर है। " ध्वस्तमोहम्'' [ ध्वस्त ] मूलसे उखाड़ है [ मोहम् ] भ्रान्तिको जिसने ऐसा है । भावार्थ इस प्रकार है कि इस शास्त्रमें शुद्ध जीवका स्वरूप निःसंदेहरूपसे कहा है । और कैसा है ? 'आत्मना आत्मनि आत्मानम् अनवरतनिमग्नं धारयत्' [आत्मना ] ज्ञानमात्र शुद्ध जीवके द्वारा [ आत्मनि] शुद्ध जीवमें [आत्मानम् ] शुद्ध जीवको [ अनवरतनिमग्नं धारयत् ] निरन्तर अनुभवगोचर करता हुआ। कैसा है आत्मा ? 'अविचलितचिदात्मनि ' ' [ अविचलित ] सर्व काल एकरूप जो [चित् ] चेतना वही है [ आत्मनि ] स्वरूप जिसका ऐसा है। नाटक समयसारमें अमृतचन्द्रसूरिने कहा जो साध्य - साधक भाव सो सम्पूर्ण हुआ। नाटक समयसार शास्त्र पूर्ण हुआ। यह आशीर्वाद वचन है ।। १३–२७६ ।। .. .. Please inform us of any errors on rajesh@Atma Dharma.com

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